त्रिजटा अघोरनी सिद्धि
यह साधना 21 दिनों की होती है।
साधक को साधना काल में सफेद वस्त्र धारण करने चाहिए।
सफेद आसन प्रयोग करना चाहिए।
अपने सामने कांसे की थाली में भगवान शिव का फोटो स्थापित करें।
फोटो पर गेंदे के फूलों की माला स्थापित करे।
चन्दन का इत्र ,चमेली का इत्र,उद का इत्र चढ़ाय।
लाल सिंदूर का तिलक साधक स्वयं और शिवजी को लगाए।
शुद्ध देशी घी का दीया जलाय जो कम से कम 3घंटे जल सके।
यह साधना शनिश्चरी अमावस्या से शुरू करे।
रात्रि 10बजे से बन्द कमरे में करे।चमेली,मोगरा,चन्दन ,गुलाब का धूप जलाए।
कमरे में फर्श और दीवारों पर सुगन्धित सेंट चमेली,मोगरा,गुलाब का छिड़काव करें।
थाली में सफेद मिठाई,बताशे,फल रखे।
सिन्दूर और चावल रखे।
मंत्र जाप के समय साधक को बन्द आंखों से थर्ड आई अर्थात् आज्ञा चक्र पर श्मशान की आत्माएं दिखनी शुरू हो जाती है।आवाजे आनी शुरू हो जाती है।कमरे के अंदर मुर्दे के जलने की बदबू आने लगती है।
आज्ञा चक्र के माध्यम से साधक त्रिजटा अघोरनी से वार्ता और वचन करता है।
मंत्र जप में रुद्राक्ष की माला या काली हकीक माला उत्तम है।
पवित्रीकरण,वास्तुदोष पूजन,गुरुपूजन,संकल्प लेकर साधना शुरू करे।
सिद्ध होने के बाद साधक कोई भी षटकर्म करने में समर्थ हो जाता है।यह साधना प्रतिदिन 3 घंटे करनी होती है।
मंत्र अत्यंत तीव्र और खतरनाक प्रभाव पूर्ण है,
समयानुसार
योग्य साधक को ही सिद्ध कराया जाएगा।
गुरुदेव अशोक कुमार चंद्रा
हरिद्वार उत्तराखंड भारत
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Saturday, January 11, 2020
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