शौहा वीर साधना ।।।।
यह साधना 44 दिन की है।इस साधना में हनुमानजी किसी भी समय सिद्ध हो जाते है और एक वीर के रूप में
साधक के कार्य सम्पन्न करते है।
इस
साधना में सबसे पहले सभी सामग्री लगा ले फिर अपना पवित्रीकरण करे ,उसके बाद सभी सामग्री का पवित्रीकरण करण करे।
इसके बाद नैऋत्य दिशा में वास्तुदोष पूजन करे।
सुरक्षा के लिए ब्रह्मचक्र गले में धारण करे।
इसके बाद गुरुमंत्र की एक माला जप करे।हनुमान चालिसा का पाठ करे।अपने दाहिने तरफ ताँबे के लौटे में जल ,सामने धुना उसमे उपले की आग रखकर उसके ऊपर देशी घी, थोड़ी से हवन सामग्री,बतासे,लोबान डाले।साधना काल में ये सुलगता रहे।
ये साधना रात को 9 बजे से शुरू करे और 10 माला रोज जाप करे।अपने सामने बाजोट पर लाल कपडा बिछाये उसके ऊपर कांसे की थाली में देशी घी का बड़ा चिराग जलाये।लाल गुलाब की पंखुड़ी बिछाए।चन्दन की धूपबत्ती जलाये।एक फल, एक मिठाई ,लाल सिंदूर भी रखे।
भोजन सुबह 11 बजे और शाम को 5 बजे करे।
भोजन में खीर,मिठाई,फल,
मूँग की दाल चावल या रोटी ले।
ब्रह्मचारी बने रहे।
अगर साधना में कोई त्रुटि गलती हो गयी तो साधक को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ जायेगा।अगर साधना बीच में छोड़ दी या किसी भयानक आवाज या दृश्य को देखकर डर गए तो साधक की कहानी खत्म हो जाती है।
माथे पर लाल सिंदूर का तिलक लगाये हनुमान जी वाला,अगर सिंदूर न हो तो लाल चन्दन का तिलक लगाये।
साधक को स्नान गुलाब चमेली मोगरा के फूलो के पानी में करना चाहिए।
साधक को लाल वस्त्र धारण करने चाहिए ।
मन्त्र जाप दाहिने हाथ के अंगूठा और बीच की ऊँगली से करे।
साधना काल में मंगलवार शनिवार को हनुमान जी के मंदिर जाना चाहिये।पूजा पाठ करनी चाहिये।
गरीबो को दान ,भोजन भी कराये।
जब शौहा वीर सिद्ध होते हैं तो साधक के सामने प्रकट होकर उसके वचन के अनुसार कार्य करते है।
यह वीर सिद्धि उज्जैन के राजा विक्रमादित्य को सिद्ध थी जिसके बल पर उन्होंने दानवीर कर्ण का घमण्ड पानी पानी कर दिया था और उसी दिन से कर्ण कि स्वर्ण प्राप्ति देवी चेटक सिद्धि समाप्त हो गयी थी और कर्ण फिर सोना दान नही कर पाया,,,यह मन्त्र 2 तरह के है यहां पर 1 ही मन्त्र का उल्लेख किया गया है।विक्रमादित्य जी ने यह कदम तब उठाया जब उनके राज्य की जनता के मुह से रोज दानवीर कर्ण की जय जयकार के नारे लगते थे और
उनकी ख्याति लुप्त होने की कगार पर थी तब राजा ने यह निर्णय लिया और कर्ण के राज्य में रात्रि में वेश बदलकर गये और वीरो से पता किया की कर्ण की सिद्धि कैसे खत्म हो तब वीरो ने बताया की कर्ण 12 बजे मन्दिर में प्रवेश कर अपनी बलि देकर माता को भोजन करायेगा और माता उसके शरीर को खाने के बाद उसके माँस के कुछ अंश को अमृत की बुँदे डालकर उसको जीवित कर स्वर्ण प्रदान करेगी,,तब आप 1 घण्टा पहले जाए और अपने शरीर को तलवार से जितना जगह से चीर सकते है चीरे और उसमे नमक मिर्च भर ले,,फिर 11 बजे मन्दिर के तेल के खोलते कड़ाही में कूद जाये और देवी आपको भोजन कर प्रसन्न होकर वर मांगने को कहेगी तब आप 3 वचन ले,,
मन्त्र।।पहले वचन में आप कहे की उबलते तेल की कढ़ाही हमेशा के लिये उलट जाये,, दूसरे में आप यह स्थान छोड़कर कहीं पर्वत पर निवास करे,तीसरे में अमृत कलश का कभी मानब हेतु उपयोग न करे।राजा ने ऐसा ही किया और नमक मिर्च से युक्त देह को खाकर स्वादिष्ट भोजन को आनंद लिया तब बोली आज तक इतना अच्छा भोजन नही किया था,,तुझसे प्रसन्न हूँ मांग क्या मांगता है,,तब राजा ने वीरो के अनुसार 3 वचन माँग लिए।रात्रि को जब कर्ण पहुंचा तो तेल की कढ़ाई भी उलटी पड़ी थी और देवी भी ,उनका कलश भी गायब था।कर्ण के महल में हा हा कार मच गया फिर राजा को अपनी प्रसिद्धि पहले जैसी मिल गयी।
अगर इसमें साधक को किसी वस्तु की इच्छा है यदि मुश्किल में है तो यह वीर उसको लाकर भी देते है किन्तु जहाँ से यह लाते है उस दूकानदार को उतने ही पैसे बाद में साधक को देने चाहिए नही तो वीर नाराज हो जाते है,,
मन्त्र
शोह चक्र की बाबड़ी डाल मोतियन का हार,,
पदम् नियानी निकरि लंका करे निहाल,,
लंका सो कोट समुद्र सी खाई चले चौकी हनुमंत वीर की दुहाई,,
कौन कोन वीर चले मरदाना वीर चले,,
सवा हाथ जमीन को सोखन्त करना जल का सोखन्त करना ,,
पय का सोखन्त करना,पवन का सोखन्त करना,लॉग को सोखन्त करना,चूड़ी को सोखन्त करना,,
पलना को भूत को पलीत को अपने वरि को सोखन्त करना,,मेवत उपात भाकी चन्द्र कले नही,चलती पवन मदन सुतल करे,माता का दूध हराम करे,शब्द साँचा फुरे मन्त्र इश्वरोवाचा।
जो साधक यह साधना करते है उनको त्यागी होना चाहिये।
गुरु अशोक कुमार चंद्रा
हरिद्वार उत्तराखण्ड
हेल्पलाइन
09997107192
08868035065
07669101100