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Friday, April 4, 2025

श्मशान देवी सिद्धि

1- काली कपालिनी साधना काली कपालिनी साधना प्राचीन काल में काफी प्रचलित थी, धीरे धीरे इस साधना के माध्यम से मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे। इस साधना के माध्यम से प्राचीन काल में किसी भी दुर्लभ वस्तु को प्राप्त किया जा सकता था। जैसे किसी भी भयानक बीमारी को दूर करने के लिए कोई जड़ी बूटी तलाश करनी होती थी, उसको इस साधना के माध्यम से प्राप्त कर सकते थे। यह साधना चारों युगों में फलदाई होती है। इसके माध्यम से किसी भी अज्ञात अनदेखी वस्तु को प्राप्त किया जा सकता है, उसके विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त की जा सकती है, उसकी खोज की जा सकती है और गंतव्य की प्राप्ति की जा सकती है। यह साधना रात्रि कालीन होती है, इस साधना को श्मशान घाट में सिद्ध किया जाता है, यह साधना एकांत वातावरण में होनी चाहिए अर्थात श्मशान घाट के आसपास कोई भी चहल-पहल भीड़ भाड़ नहीं होनी चाहिए। जैसे श्मशान घाट कुछ एकांत में होते हैं, जंगलों में होते हैं, इस तरह के श्मशान घाट के आसपास आबादी नहीं होनी चाहिए। इसके माध्यम से साधक साधना को सिद्ध कर सकता है और सिद्ध देवी शक्ति से साक्षात्कार कर सकता है। यह साधना पूर्ण रूप से तामसिक होती है, अतः सात्विक साधक इस साधना को ना करें, इस साधना में बहुत ही भयानक आकृति वाले भूत-प्रेत, पिशाच, चुड़ैल,डायन,जिन्न आदि आत्माएं साधक की परीक्षा लेते हैं। उनको डराते हैं,उनमें भय पैदा करती हैं ताकि साधक साधना के दौरान साधना को छोड़ दें और साधना स्थल से भाग जाए। किसी योग्य गुरु के दिशा-निर्देशन में यह साधना सिद्ध करनी चाहिए, इस साधना को पूर्ण रूप से सिद्ध करने के लिए देवी काली कपालिनी दीक्षा ग्रहण करना अनिवार्य है, इसके माध्यम से साधक के अंदर देवी काली कपालिनी की ऊर्जा का वास होता है और जो कुछ साधक के देह में साधना सिद्धि में रुकावट होती है, दूर होती है और साधक प्रथम बार में साधना को पूर्ण रूप से सिद्ध करता है। साधना से पूर्व साधक को कुछ कार्य संपन्न करने चाहिए, इन कार्यों को संपन्न करने से साधना काल में बांधा नहीं आती है, यह कार्य सभी साधना सिद्ध करने वाले साधकों के ऊपर लागू होते हैं, चाहे साधक तामसिक साधना कर रहा है या सात्विक साधना कर रहा है अथवा राजसिक साधना कर रहा है अथवा किसी भी तरह का शारीरिक योग क्रिया कर रहा है, इन कार्यों में मुख्य कार्य होता है साधक को अपने शरीर का ज्ञान , शरीर का ज्ञान से तात्पर्य यह है कि साधक के शरीर में किसी तरह की कोई अन्य सूक्ष्म आत्मा का प्रवेश तो नहीं है, साधक के किसी शत्रु द्वारा कोई तांत्रिक प्रयोग तो नहीं चल रहा है, साधक को कुछ बचपन में या उसके पूरे जीवन काल में कोई तांत्रिक विद्या से अभिमंत्रित पदार्थ तो नहीं खिलाया गया, साधक के नव ग्रहों की दशा की क्या स्थिति है, इस तरह से यह सभी मानक साधक को देखना अनिवार्य होता है, यदि कुछ भी ऐसी समस्या, बांधा शरीर में होती है तो इनका तुरंत साधक को इलाज कराना चाहिए और इन समस्याओं से मुक्त होना चाहिए और उसके बाद साधना का कार्य शुरू करना चाहिए, इसके अतिरिक्त पूर्व जन्मों के कर्म बंधन, पीढ़ी दर पीढ़ी पितरों का प्रकोप जिसे पितृदोष भी कहते हैं ,उसका भी निवारण करवाना चाहिए। काली कपालिनी साधना पूर्ण रूप से तामसिक साधना है, इसके माध्यम से साधक अपने उद्देश्य की पूर्ति करता है और अन्य लोगों की समस्याओं का समाधान भी करता है, इसके माध्यम से दुर्लभ वस्तु को प्राप्त करने योग्य बनाते हैं, यहां पर काली कपालिनी साधना में अनेक प्रकार की सामग्रियों का वर्णन किया गया है, जो साधना के लिए प्रयोग की जाती है, मंत्र जाप की विधि का वर्णन किया गया है। साधना काल में किस तरह से साधक को अनुभव होते हैं और सिद्ध होने पर देवी शक्ति का प्रयोग किस तरह से किया जाता है उसका वर्णन किया गया है। यह साधना के सिद्ध होने पर साधक के चेहरे पर एक विशेष प्रकार का तेज होता है, जिसके माध्यम से साधक के मनोबल की स्थिति दृढ़ होती है, साधक की संकल्प शक्ति बढ़ती है, किसी भी निर्णय को तुरंत ले सकता है, शरीर ऊर्जावान होता है, शरीर में उत्पन्न होने वाले रोग नष्ट होते हैं, मन शांत होता है, मन में स्थिरता होती है, मन के भीतर किसी भी तरह का हलचल, बेचैनी नहीं होती है, इस साधना के साधक को लाल वस्त्र धारण करने चाहिए। अधिकतर समय लाल वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए। मंत्र ॐ ह्रूम् ह्रीम् काली कपालिनी ह्रीम् ध्रीम् ध्रूम् फट् । सामग्री काली कपालिनी साधना को सिद्ध करने के लिए साधक को 10 मीटर लाल वस्त्र की आवश्यकता होती है जिसमें से 7 मीटर का कपड़ा साधक पहनता है और 3 मीटर के कपड़े के दो टुकड़े करता है, डेढ़-डेढ़ मीटर के दो टुकड़े होते हैं। कुशा का आसन बिछाया जाता है उस आसन के ऊपर डेढ़ मीटर का लाल वस्त्र बिछाया जाता है अब ठीक सामने दूसरा लाल वस्त्र बिछाया जाता है, उसके बाद 7 मीटर लाल वस्त्र को साधक स्वयं पहनता है। रुद्राक्ष की माला मंत्र जाप के लिए बहुत फलदाई होती है, रुद्राक्ष की माला का सबसे पहले संस्कार करना चाहिए, रुद्राक्ष की माला को गंगा जल में डुबोकर निकालें उसके बाद लाल वस्त्र से पोंछ कर फिर लाल सिंदूर रुद्राक्ष माला के सभी दानों पर लगा दे इस तांत्रिक क्रिया को करने से रुद्राक्ष माला जागृत अवस्था में आ जाती है और मंत्र जाप को फलदाई बनाती है। रुद्राक्ष शिवजी का प्रतीक है और सिंदूर कामाख्या देवी का प्रतीक है इस प्रकार माला में शिव और शक्ति दोनों का वास हो जाता है। इस माला को साधना से पूर्व संस्कार करके गोमुखी में रखें, गोमुखी एक प्रकार का माला रखने का छोटा सा थैला होता होता है। सभी साधनाओं में रुद्राक्ष माला के द्वारा जाप करने पर तुरंत सिद्धि प्राप्त होती है और साधक अपने अभीष्ट उद्देश्य की पूर्ति साधना के माध्यम से प्राप्त करता है। लाल वस्त्र के ऊपर मिट्टी के एक प्याले में मदिरा को रखना चाहिए, मदिरा के पास कम से कम 3 फीट लंबाई की एक तलवार होनी चाहिए। लाल कनेर के फूलों की एक माला होनी चाहिए, मिट्टी के एक प्याले में भोग के लिए मांस होना चाहिए। मोगरा, गुलाब और चमेली का इत्र कपड़ों पर लगा होना चाहिए। सामग्री के स्थान पर सुगंधित धूप मोगरा, गुलाब और चमेली की जलती रहनी चाहिए। तांबे के कलश में जल भरा होना चाहिए, थोड़ी सी मात्रा में साबुत चावल होने चाहिए और थोड़े से अलग से खिले हुए लाल कनेर के फूल होने चाहिए। मालाओं की गिनती याद रखने के लिए साधक को अपने पास माचिस की तीलियां रखनी चाहिए जिससे मालाओं की गिनती करने में कोई त्रुटि ना हो सके। इसके अतिरिक्त दीपक को इस प्रकार श्मशान भूमि में रखना चाहिए जिससे वहां पर रात को बहने वाली हवा दीपक को ना बुझा सके, यदि जरूरी हो कि हवा तेज है तो साधक श्मशान भूमि में 1 फीट का गहरा गड्ढा खोदकर उसके भीतर भी दीपक की स्थापना कर सकते है। साधना विधि यह साधना दो चरणों में सिद्ध की जाती है प्रथम चरण की साधना 7 दिन की होती है और द्वितीय चरण की साधना 21 दिन की होती है प्रथम चरण की साधना मैं साधक को 11 माला जप प्रतिदिन करना अनिवार्य होता है, माला जप प्रतिदिन 7 दिनों तक करना होता है, सातवें दिन काली कपालिनी देवी साधक को सिद्ध होती है, यदि किसी वजह से साधक को सिद्ध नहीं होती है तब साधक को साधना का दूसरा चरण 21 दिन 21 माला प्रतिदिन का उपयोग करना चाहिए। एक बात यहां विशेष ध्यान देने योग्य है की साधना काल में सभी साधकों को अलग-अलग तरह के अनुभव होते हैं, जरूरी नहीं है कि सभी साधकों को एक ही तरह के अनुभव हो, साधना काल में इतना जरूर संभव है कि साधक को कुछ अनुभव एक जैसे और कुछ अनुभव उनसे मिलते-जुलते हो सकते हैं। यहां साधना को सिद्ध करने में किस किस तरह के अनुभव होते हैं?, प्रतिदिन 21 दिनों का उल्लेख किया गया है जिसे साधक पूर्ण रूप से सोच समझकर जान सकते हैं और साधना को गुरु निर्देश पर सिद्ध कर पारंगत हो सकते हैं। यह साधना रात्रि को ठीक 12:00 बजे शुरू की जाती है इस साधना में सबसे पहले साधक को स्नान करके साधना की सभी सामग्री को साधना स्थल पर एकत्रित करना होता है, उसके बाद साधक को लाल वस्त्र धारण करके माथे पर सिंदूर का तिलक लगाना चाहिए, कुशा का आसन बिछाकर लाल वस्त्र का टुकड़ा बिछाना चाहिए, एक टुकड़े पर साधना की सामग्री मांस, मदिरा, तलवार, धूपबत्ती, अगरबत्ती इत्र, फूल माला और तेल का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए, तांबे के लोटे में जल भरकर रखना चाहिए। जल की मात्रा लगभग कम से कम 1 लीटर होनी चाहिए, 1 लीटर से कम जल तांबे के लोटे में नहीं होना चाहिए, यह सभी साधनाओं में अनिवार्य है। सबसे पहले तेल का दीपक जलाना चाहिए, उसके बाद धूपबत्ती, अगरबत्ती जलानी चाहिए, उसके बाद प्याले में मदिरा रखनी चाहिए और एक प्याले में मांस रखना चाहिए, फूल माला चढ़ानी चाहिए, कुछ बिखरे हुए फूल भी रखने चाहिए। थोड़े से चावल भी रखने चाहिए। तलवार पर सिंदूर का तिलक लगाना चाहिए, फूल चढ़ाने चाहिए, इस तरह से तलवार का पंचोपचार पूजन करना चाहिए। दूसरी तरफ दाहिने हाथ में जल लेकर शरीर का पवित्रीकरण करना चाहिए, उसके बाद पुनः दाहिने हाथ में जल लेकर सामग्री का पवित्रीकरण करना चाहिए, उसके बाद नैऋत्य दिशा में भूमि पर धूप बत्ती जला कर वास्तु दोष पूजन करना चाहिए, वास्तु दोष पूजन के बाद दाहिने हाथ में जल लेकर साधना का संकल्प लेना चाहिए, संकल्प लेने के बाद उस जल को दाहिने हाथ से भूमि पर गिरा देना चाहिए। उसके बाद सुरक्षा मंत्र करना चाहिए, सुरक्षा मंत्र में साधक को दो तरह के प्रयोग करने चाहिए, एक प्रयोग में साधक को अपने शरीर का बंधन करना चाहिए और दूसरे प्रयोग में साधक को अपने चारों तरफ साधना सामग्री सहित गोल घेरा सुरक्षा के लिए त्रिशूल से लगाना चाहिए जिसमें कोई भी आत्मा प्रवेश ना कर सके, इसके बाद देवी काली कपालिनी का ध्यान करना चाहिए और मंत्र जाप दाहिने हाथ के अंगूठे और बीच की मध्यमा उंगली से करना चाहिए। यहां 21 दिन की साधना का उल्लेख किया जा रहा है जिसमें साधक को नए नए अनुभव होते हैं। काली कपालिनी देवी साधना के किसी भी समय आकर साधक को वचन दे सकती है इसलिए साधक को हमेशा मंत्र जाप के समय सावधान रहना चाहिए, साधक का आज्ञा चक्र पूर्ण विकसित होना चाहिए जिससे दिव्य दृष्टि के माध्यम से साधक को आज्ञा चक्र में देवी काली कपालिनी और श्मशान में होने वाले उपद्रव, सूक्ष्म आत्माओं के द्वारा स्पष्ट रूप से महसूस हो सके और दिखाई दे सके। जिन साधकों का आज्ञा चक्र विकसित नहीं है उनको अपने आसपास आभास, हलचल हो सकता है किंतु दिव्य दृष्टि ना होने के कारण कुछ दिखाई नहीं देगा। जब साधक मंत्र जाप शुरू करता है तो श्मशान में चारों तरफ का वातावरण शांत होना चाहिए, साधना मैं गुरु स्थान से साधक को लगभग 25 मीटर की दूरी पर बैठना चाहिए, मंत्र जाप करते हुए साधक के सामने प्रथम दिन शमशान की कुछ आत्माएं आज्ञा चक्र के माध्यम से दिखाई देती हैं ये प्रेत आत्माएं होती हैं और साधक को मंत्र जाप छोड़ने के लिए विवश करती हैं, साधक को मानसिक रूप से विचलित करते हैं, कमजोर कर उसके मनोबल को तोड़ती है, जब मंत्र जाप पूर्ण हो जाता है तब साधक को थोड़ी सी मदिरा भूमि पर गिरा कर हाथ जोड़कर क्षमा याचना करके, साधना स्थल से उठकर कुटिया में जाकर शयन करना चाहिए, सुबह से शाम तक अपनी दिनचर्या शुरू करनी चाहिए और रात्रि होने पर उन्हें दूसरे दिन साधना की सामग्री नए सिरे से तैयार करनी चाहिए। दूसरे दिन साधक पुनः साधना शुरू करता है, उस दिन साधक को आज्ञा चक्र के माध्यम से अनेक प्रकार की स्त्रियां श्मशान में घूमते हुए दिखाई देती हैं, साधक को डराती हैं धमकाती हैं, अतः साधक को धैर्य के साथ साधना करते रहना चाहिए। तीसरे दिन साधक के सामने मंत्र जाप के सामने सांप आते हैं और आज्ञा चक्र के माध्यम से साधक को एकदम साफ दिखाई देते हैं और साधक को ऐसा भी महसूस होता है कि जैसे साधक को सांप लिपट गया हो, उस अवस्था में भयभीत नहीं होना चाहिए, यह एक मानसिक परीक्षा होती है यदि इस परीक्षा में साधक डर जाता है तो और मंत्र जाप रोक देता है, आंख खोल देता है तो साधना खंडित हो जाती है। चौथे दिन प्रेत आत्माएं आती हैं और साधक को डराती हैं और शमशान की भूमि के हिलने की आवाज आती है ऐसा लगता है मानो जैसे शमशान की भूमि टूट रही हो और उसमें से कुछ ऊपर आने की कोशिश कर रहा है। पांचवे दिन साधक के सामने आज्ञा चक्र के माध्यम से देवी काली कपालिनी जमीन को उखाड़ना शुरू कर देती है क्योंकि देवी काली कपालिनी श्मशान भूमि के अंदर होती है और भूमि को तोड़कर बाहर निकलती है, छठे दिन साधक को मंत्र जाप के समय श्मशान में घूमने वाले आसपास के कुत्ते साधक का पूजा सामग्री खा गए हो ऐसा महसूस होता है, अनुभव होता है किंतु यह एक भ्रम होता है। सातवें दिन सभी प्रेतों का हाहाकार श्मशान भूमि में होता है और इस समय देवी काली कपालिनी श्मशान भूमि उखाड़ कर बाहर निकलती है, इसमें दो स्थितियां बनती है एक स्थिति यह होती है कि देवी साधक से वार्ता कर वचन के अनुसार शून्य सिद्धि देती है और दूसरी स्थिति यह होती है कि साधक को कोई देवी दर्शन नहीं मिलता है। उसके बाद साधक को 21 दिन की साधना शुरू करनी चाहिए। साधना के 8वे दिन, 9वे दिन, 10वे दिन, 11वे दिन, 12वे दिन, 13वे दिन, 14वे दिन, 15वे दिन, 16वे दिन, 17वे दिन, 18वे दिन, 19वे दिन, 20वे दिन और 21 वे दिन भी श्मसान में सभी तरह के उपद्रव सूक्ष्म शरीरों के द्वारा किए जाते हैं जिनको साधक अपने आज्ञा चक्र के माध्यम से देख सकता है और बंद आंखों में अपने चारों तरफ महसूस कर सकता है, काली कपालिनी देवी साधक के चारों तरफ बहुत तीव्र हवा के झोंके की तरह घूमती है और अपना भोग ग्रहण करती है। 21 वे दिन काली कपालिनी देवी जाग जाती है और श्मशान की भूमि को तोड़कर बाहर निकलना शुरु करती है जब यह सामने आती हैं तो भयंकर रूप में काली कपालिनी देवी अनेक भुजाओं के साथ दर्शन देती है, साधक को भयभीत करती है, यदि साधक आज्ञा चक्र के माध्यम से इन दृश्यों को देखकर नहीं डरे तो अंत में एक हाथ में पुराना जंग लगा त्रिशूल और डमरू लिए हुए नाक चपटी, बाहर को दो लंबे दांत निकले हुए, मुंह से रक्त बहता हुआ ऐसे दृश्य में साधक को दर्शन देकर वचन करती है और साधक को शून्य साधना सिद्ध होती है, यह साधक को सभी तरह के गुप्त रहस्य का उद्घाटन करती है, सभी तरह का समस्याओं का समाधान बताती है। कुछ साधकों का साधना काल में अनुभव अलग-अलग होता है, एक साधक जो अजमेर में रहता है उसके द्वारा किया गया अनुभव बहुत ही विचित्र है, जब यह सात दिवसीय काली कपालिनी साधना को सिद्ध कर रहे थे तो उन्होंने बताया कि साधना के अंतिम दिन देवी काली कपालिनी ने स्वयं आकर उनकी परीक्षा ली, क्रोध मुद्रा में देवी ने अपने त्रिशूल को साधक की ओर छोड़ दिया और साधक को ऐसा प्रतीत हुआ कि जैसे देवी त्रिशूल ने साधक की गर्दन को काट दिया है और साधक का सिर त्रिशूल के ऊपर आ गया और श्मशान के चारों तरफ हवा में उड़कर घूम रहा है साधक को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसका धड़ पूजा स्थल पर रखा है किंतु सिर नहीं है, फिर अचानक से साधक को ध्यान अवस्था में यह महसूस हुआ मंत्र जाप करते हुए कि साधक का यह एक भ्रम था, यह मानसिक रूप से की गई परीक्षा थी जिसमें साधक विचलित नहीं हुआ उसने मानसिक संतुलन बनाए रखा और मंत्र जाप पूर्ण कर देवी काली कपालिनी के दर्शन किए, उनसे साक्षात्कार किया और वचन सिद्धि की। इस प्रकार अनेक तरह के चमत्कार साधना में होते हैं जिनसे साधक को भयभीत नहीं होना चाहिए, यह एक भ्रम मात्र होता है किंतु देवी-देवताओं, सूक्ष्म आत्माओं के द्वारा इसी तरह साधकों की परीक्षा ली जाती है। यह परीक्षा उन्हीं साधकों पर लागू होती है जिनका आज्ञा चक्र पूर्ण रूप से विकसित होता है और आंख बंद करने पर आज्ञा चक्र के माध्यम से उन्हें अदृश्य शक्तियों के दर्शन होते हैं। यह साधना साधक को गुरु के दिशा निर्देशन में ही करनी चाहिए, गुरु के द्वारा देवी काली कपालिनी दीक्षा ग्रहण करनी चाहिए और इस साधना को गुरु सानिध्य में ही सिद्ध करें। साधना को स्वयं करने की कोशिश ना करें क्योंकि साधना का पूर्ण फल गुरु सानिध्य से ही प्राप्त होता है, इस साधना में भोग में बूंदी के लड्डू भी रख सकते हैं। यह साधना अत्यंत उग्र और खतरनाक साधना है। अतः गुरु सानिध्य में ही साधना को संपन्न करने की कोशिश करें। साधना काल में साधक को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए, किसी से भी बात नहीं करनी चाहिए, मौन व्रत धारण रखना चाहिए, हमेशा मन में अच्छे विचारों को उत्पन्न करना चाहिए, किसी भी तरह का मन में क्रोध, गुस्सा, अशांति, घबराहट आदि से दूर रहना चाहिए। साधना में उपयोग होने वाले शरीर पवित्रीकरण मंत्र, सामग्री पवित्रीकरण मंत्र, वास्तु दोष पूजन आदि के मंत्र पुस्तक के शुरुआत में दिए गए हैं। साधक इन मंत्रों को पूर्ण रूप से याद कर ले और प्रत्येक साधना में उपयोग करें। प्रयोग जब साधक को यह साधना सिद्ध हो जाती है तो साधक को साधना का प्रयोग आना भी अनिवार्य होता है, अक्सर यह देखा गया है के अनेक जगह पर साधनाओं का वर्णन तो मिलता है किंतु उनको प्रयोग कैसे किया जाता है उसका कोई वर्णन नहीं किया जाता है, जिस तरह से साधक ने साधना काल में सामग्री लगाकर साधना सिद्ध की थी, उसी तरह प्रयोग में भी सामग्री को लगाया जाता है और साधना सिद्धि की जाती है, साधना का प्रयोग किया जाता है। यदि कोई रहस्यमय बीमारी है और उसका इलाज नहीं मिल रहा है तो साधक को इस साधना के माध्यम से मंत्र की देवी शक्ति का आवाहन करके उससे भी बीमारी के विषय में जानकारी प्राप्त हो सकती है और उससे संबंधित जड़ी-बूटी, पेड़-पौधें को साधक देख सकता है और वह कहां पर प्राप्त होगा वहां तक देवी साधक को पहुंचा सकती है। आज्ञा चक्र के माध्यम से साधक को जिस वस्तु की इच्छा होती है देवी शक्ति उस वस्तु को दिखाती है और वह वस्तु कहां पर स्थित है उसकी स्थिति का ज्ञान कराती है और वहां तक पहुंचने के लिए साधक का मार्गदर्शन करती हैं उस वस्तु का क्या रूप रंग है?, क्या आकृति है?, क्या गुण है?, किस उपयोग में उसको लिया जाता है?, आदि सभी चीजों के विषय में विस्तृत जानकारी देती हैं। इसके माध्यम से साधक उस वस्तु की प्राप्ति कर सकता है, बताए गए स्थान को खोज कर उस को प्राप्त कर सकता है, इसके साथ ही इसमें एक मार्ग भी होता है इसे शून्य मार्ग कहा जाता है यह मार्ग धीरे-धीरे साधक को प्राप्त होता है इस मार्ग का वर्णन आगे किया गया है, इस तरह से साधक किसी भी समस्या का समाधान प्राप्त कर सकता है और किसी भी तरह की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति का इलाज कर सकता है। इसके माध्यम से अनेक दुर्लभ रहस्यों का उद्घाटन किया जाता है, उनके विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त की जाती है, पाताल लोक के विषय में जानकारी प्राप्त की जाती है, ब्रह्मांड के अनेक रहस्यों का ज्ञान होता है, किस ग्रह पर क्या स्थिति है?, किस बीमारी का क्या इलाज है?, उसका ज्ञान होता है। देवी काली कपालिनी की साधना अनेक रहस्यों को समेटे हुए हैं इस साधना के माध्यम से असंभव और दुर्लभ वस्तुओं की प्राप्ति के मार्ग को संभव और सुलभ मार्ग बनाया जाता है, सिद्ध साधक के लिए यह पल भर का कार्य होता है इस साधना के माध्यम से साधक इसका सदुपयोग कर सकता है, इस साधना का कोई भी दुरुपयोग नहीं कर सकता है, इस साधना का उद्देश्य अनेक रहस्यों का खुलासा करना है और अनेक रहस्यमई बीमारियों को दूर करना है।

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श्मशान देवी सिद्धि

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