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Saturday, January 11, 2020

त्रिजटा सिद्धि

त्रिजटा अघोरनी सिद्धि यह साधना 21 दिनों की होती है।
साधक को साधना काल में सफेद वस्त्र धारण करने चाहिए। सफेद आसन प्रयोग करना चाहिए। अपने सामने कांसे की थाली में भगवान शिव का फोटो स्थापित करें। फोटो पर गेंदे के फूलों की माला स्थापित करे। चन्दन का इत्र ,चमेली का इत्र,उद का इत्र चढ़ाय। लाल सिंदूर का तिलक साधक स्वयं और शिवजी को लगाए। शुद्ध देशी घी का दीया जलाय जो कम से कम 3घंटे जल सके। यह साधना शनिश्चरी अमावस्या से शुरू करे। रात्रि 10बजे से बन्द कमरे में करे।चमेली,मोगरा,चन्दन ,गुलाब का धूप जलाए। कमरे में फर्श और दीवारों पर सुगन्धित सेंट चमेली,मोगरा,गुलाब का छिड़काव करें। थाली में सफेद मिठाई,बताशे,फल रखे। सिन्दूर और चावल रखे। मंत्र जाप के समय साधक को बन्द आंखों से थर्ड आई अर्थात् आज्ञा चक्र पर श्मशान की आत्माएं दिखनी शुरू हो जाती है।आवाजे आनी शुरू हो जाती है।कमरे के अंदर मुर्दे के जलने की बदबू आने लगती है। आज्ञा चक्र के माध्यम से साधक त्रिजटा अघोरनी से वार्ता और वचन करता है। मंत्र जप में रुद्राक्ष की माला या काली हकीक माला उत्तम है। पवित्रीकरण,वास्तुदोष पूजन,गुरुपूजन,संकल्प लेकर साधना शुरू करे। सिद्ध होने के बाद साधक कोई भी षटकर्म करने में समर्थ हो जाता है।यह साधना प्रतिदिन 3 घंटे करनी होती है। मंत्र अत्यंत तीव्र और खतरनाक प्रभाव पूर्ण है, समयानुसार योग्य साधक को ही सिद्ध कराया जाएगा। गुरुदेव अशोक कुमार चंद्रा हरिद्वार उत्तराखंड भारत हेल्पलाइन 00917669101100

Friday, October 18, 2019

ब्रह्मचक्र सुरक्षा कवच 2019

ब्रह्मचक्र -
दीपावली 2019 ,27,28 अक्टूबर के इस पर्व पर लगभग 1008 ब्रह्मचक्र को तैयार किया जायेगा। इस सुरक्षा चक्र में काली देवी लक्ष्मी देवी सरस्वती देवी,त्रिदेव शक्ति ब्रह्मा विष्णु महेश को मन्त्र अनुष्ठान के माध्यम से चक्र में सभी शक्तियो को प्रवेश कराकर सिद्ध ब्रह्मचक्र का निर्माण किया जाता है। इस चक्र में भूत दाना,प्रेतदाना,चुडेल दाना ,आदि शक्तियो से सिद्ध किया जाता है। सिद्ध होने के बाद चक्र जाग्रत अवस्था में आ जाता है जिसे गले में काले धागे में धारण किया जाता है। ब्रह्मचक्र धारणकर्ता की पर्याप्त सुरक्षा होती है।उसको कोई भी वाह्य शक्ति नुकसान नही कर सकती है। भूत,प्रेत,भटकती आत्माए,इतर योनियाँ,काला जादू,तांत्रिक मुठकरनी, चौकी, लाट, जिन,जिब्राएल,परी दोष,गढ़ंत दोष,पिशाच,ब्रह्मराक्षस,डाकिनी,शाकिनी,ओपरे,नजर आदि हवाएँ इस चक्र से ट कराकर वापस चली जाती है और धारणकर्ता से दूर हो जाती है। जिन साधको को मन्त्र जाप के समय सुरक्षा का भय बना रहता है ,इसको धारण कर सकते है , किन्तु सिद्धि के समय उनको आवाजे सुनाई दे सकती है या कोई दृश्य दिख सकता है किन्तु डरे नही ,वह आपसे दूर होगी । जिन लोगो को शारीरिक बीमारी जो रहस्यमय तरीके की होती है जिनको डॉक्टर भी नही बता पाते और ठीक नही कर सकते ,ऐसे लोग भी इसको धारण कर सकते है और जो भी शक्ति उनके शरीर को बीमार कर रही है ,वह इस चक्र के धारण कर्ता को छोड़कर भाग जाती है।इससे उनके शरीर की रहस्यमय बीमारी ठीक हो जाती है। इन आत्माओ जनित बीमारी में मुख्य रूप से रात को नींद न आना ,अचानक नींद टूट जाना,शरीर में दर्द रहना,काम में मन न लगना, घर में ही रहना,बुखार लगातार रहना,भूख न लगना या लगातार खूब सारा खाना खा लेना ,अकेले में अपने आप से बात करना आदि प्रमुख है। इसको धारण करके साधक साधना में पूर्ण सफल होते है और तांत्रिक बन्धनों से मुक्त होते है। साधक की पर्याप्त सुरक्षा होती है। जो लोग घर में अकेले रहते है या उनको आत्माओ से डर लगता है इसको धारण कर सकते है। रात को कमरे में किसी अदृश्य शक्ति का आभास होना,पैरों की आहट सुनाई देना,आवाज सुनकर नींद टूटना,सोते समय मुँह से आवाज़ न निकलना,खूब चिल्लाना पर कोई फर्क न पड़े,अदृश्य शक्ति का हमला ,सोते समय दम घुटना आदि। ब्रह्म चक्र इस बार रोगी 2 तरह से धारण करेंगे एक गले में और एक पेट पर ।। इस तरह अगर कुछ रोगी को खिला भी रखा होगा तो उसका प्रभाव भी समाप्त हो जाएगा। यह ब्रह्म चक्र सभी तरह से बचाव करता है। जो लोग तांत्रिक क्रिया से पीड़ित है,इसको धारण कर तंत्र बांधा से मुक्ति पा जाते है।स्वस्थ रहते है। जो पीड़ित है तांत्रिक क्रिया से वो हमसे सम्पर्क कर इसको प्राप्त कर सकते है। गुरु अशोक कुमार चन्द्रा हरिद्वार उत्तराखंड भारत हेल्पलाइन 00917669101100 00918868035065 00919997107192

Sunday, August 25, 2019

रोगों से मुक्ति मंत्र साधना

(शरीर क्रिया मन्त्र पराविज्ञान)लाइलाज रोगों से मुक्ति- इस मंत्र विद्या के माध्यम से किसी भी रोग का निदान संभव है। रक्त से सम्बंधित रोग ,माँसपेशियों से जुड़े रोग,अस्थियों से जुड़े रोग,किडनी से जुड़े रोग,ह्रदय से जुड़े रोग,नाड़ियों से जुड़े रोग,लिवर से जुड़े रोग,मस्तिष्क से जुड़े रोग,नसों का ब्लॉकेज खोलना ,पुराने दर्द,किसी भी तरह के ज्वर को ठीक करना अर्थात समस्त साध्य और असाध्य बीमारियों को ठीक किया जाता है। देवी या देवता के वचन के अनुसार साधक किसी भी मनुष्य की बीमारियों को अपने शरीर मे लेता है और रोगी कुछ ही मिनटों में ठीक हो जाता है।साधक की बीमारी को मन्त्र के देव या देवता गृहण कर लेते है हैं।।जिसमे साधक को 5 मिनट का कष्ट होता है जैसे किसी को गले का कैंसर है तो साधक मन्त्र शक्ति से उसके थ्रोट कैंसर को अपने गले मे कल्पना करता है तो देवी या देवता उस बीमारी को साधक के गले मे पहुँचा देते है उस अवस्था मे साधक को 5 मिनट तक गले मे केंसर की पीड़ा होगी और रोगी केंसर मुक्त होगा।।यह शक्ति सभी तरह के कैंसर में कार्य करती है किन्तु जिनका ऑपरेशन हो चुका है उनको देर में आराम होता है। इस विद्या के सिद्ध को न किसी x- ray मशीन की जरूरत है और न CITY SCAN की मशीन की जरूरत है। जब भी साधक के सामने या VOICE CALL पर कोई रोगी आता है साधक उसके सभी रोगों को अपने शरीर मे धारण कर पता कर लेता है कि इसको क्या समस्या है।फिर सिद्धि बल से उसको ठीक कर देता है। कुछ लोगो को बीमारी अचानक हो जाती है जो 24 घण्टे मे भी समाप्त हो जाती है ऐसे लोग पूजा पाठ करने वाले देवी देवताओं पर विश्वास करने वाले होती है किन्तु कुछ लोगो की बीमारी जल्दी ठीक नही हो पाती इसका कारण उनके बुरे कर्मो का फल होता है,नास्तिकता होता है।हठी स्वभाव का होना होता है। किन्तु ये लोग भी ठीक हो जाते हैं इनको 3 महीने लग जाते हैं। हमारे द्वारा वॉइस कॉल के माध्यम से भी ऑनलाइन दे व या देवी शक्ति के प्रयोग से कैंसर (ब्लड,बोन,मासपेशी,स्किन),किडनी प्रॉब्लम,heart प्रॉब्लम,लीवर ,मस्तिष्क ,पुरुष रोग ,लकवाआदि के असाध्य रोगों को ठीक किया जाता है।सभी कार्यो के लिये शुल्क निर्धारित किया गया है। देव देवी शक्तियों न केवल शक्ति देती है रोगी को बल्कि उनके अंदर पल रहे किसी भी जीवाणु,विषाणु आदि को नष्ट करने की शक्ति भी होती है।इसमें साधक सूक्ष्म रूप से रोगी के शरीर से ऐसे परजीवियों को निकाल कर देव देवी को अर्पण कर देता है।। सिद्ध साधको में यह अवस्था 5 मिनट से लेकर 1 सेकंड तक हो जाती है। जबकि देवी देवताओं में रोगों को दूर करने की अवस्था मिली,माइक्रो,नेनो,पिको सेकंड मे होती है। जैसे तुलसीदास को हनुमान जी ने रोगमुक्त किया ,कृष्ण जी ने दासी को स्पर्श मात्र से नवीन यौवन दिया। एक बात यह समझने की है कि जब कृष्ण जी किसी वृद्धा को युवती बना सकते है तो साधक भी अपने रूप को नवीन युवा बना सकता है किंतु जिन सुंदर स्त्री पुरुषों से साधक उनकी योवन ऊर्जा का अपने शरीर मे डाल कर अपने जरा ऊर्जा को स्त्री पुरुष के शरीर मे डाल सकता है।।यह महापराविज्ञान कहलाता है। इस तरह किसी भी रोगी को साधक ठीक कर सकता है किंतु देवी देवता साधक को यह भी बता देते है कि यह बीमारी क्यों है? किसी शत्रु प्रयोग से या कर्मो के फल या अकारण ।। गुरु अशोक कुमार चन्द्रा हरिद्वार उत्तराखण्ड भारत 00917669101100

Wednesday, August 14, 2019

मृत आत्माओं का ट्रांसफर श्मशान

मृत आत्माओं का ट्रांसफर (मन्त्र साधना से)- यह एक गुप्त प्रक्रिया है।इसके अन्तर्गत श्मसान जागरण किया जाता है।जिस साधक को जो शक्ति प्राप्त करनी होती है,साधक को मन्त्र जाप से उस शक्ति का आवाहन करना होता है तभी साधक को अपने आज्ञा चक्र में प्रेत आत्मा,भूत ,बेताल ,ब्रह्म राक्षस ,डायन,भैरवी,कपालिनी,श्मशान काली,मसानी, कंकाल,चंडाल,मसान,मुंजा, कच्चा कलुआ,जिन्न ,चुड़ैल,शांकिनी,डांकिनी,यक्षणी, मृत आत्मायें आदि दिखाई देती है। जिनको गौड गिफ्ट होता है वो खुली आँखों से देख सकते है जिनको जन्म से ये गौड गिफ्ट नही होता है वो साधक आज्ञा चक्र के माध्यम से उनको बन्द आंखों से देखते है। जिस साधक या साधिका को शक्ति चाहिये होती है गुरु के आदेश होने पर साधक उस श्मशान जागरण के अख़ाडे से उसको बुलाता है,उसी समय शक्ति शाली आत्मा साधक या साधिका के सामने उपस्थित होती है तो गुरु उसी समय साधक या साधिका के वचन आत्मा से कराता है और आत्मा भी साधक के हाथ पर हाथ रखकर वचन देती है। उस वचन के समय ऐसा लगता है जैसे कोई वास्तव में हाथ रखकर बात कर रहा हो। आत्मा ट्रांसफर की यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद गुरु को श्मशान सुलाना पड़ता है अर्थात शांत करना होता है,उसके बाद साधक या साधिका को गुरु आज्ञा लेकर गुरु के साथ श्मशान से बाहर निकलना चाहिये। यह प्रक्रिया 10 से 15 मिनट की होती है।डरपोक साधक या साधिका इसको न करे अन्यथा किसी भयानक दृश्य को देखकर मानसिक संतुलन खो सकते है। यह आत्माओं का ट्रांसफर केवल श्मशान में ही संभव है। श्मशान के बिना किसी भी कीमत पर आपको कोई आत्मा कोई भी तांत्रिक ट्रांसफर नही कर सकता। केवल इतना कर सकता है कि आपको बन्द कमरे के बैठाकर उसके दर्शन करा सकता है आज्ञा चक्र में। कुछ समय के लिये आत्मा आपसे बात करेगी किन्तु जब आप अपने घर जाएंगे तो आपके बुलाने पर भी नही आएगी इस स्थिति में साधक का समय पैसा खराब हो जाता है। अतः ऐसे जगह से बचे। जहाँ भी जाये श्मशान में लेकर जाये।वही से आपको वास्तविक आत्मा का ट्रांसफर होता है और जीवन भर या वचनों के अनुसार वह दिव्य और आलौकिक आत्मा आपकी सहायता करेगी। जब भी आप कहीं भी होंगे आत्मा का आवाहन करेंगे आत्मा आज्ञा चक्र में प्रकट होगी और मानसिक रूप से बात कर आपकी हर बात का उत्तर देगी। आपकी हर समस्या का समाधान करेगी। षट्कर्म भी करेगी। हमारे एक शिष्य के कहने पर मेरे द्वारा इस साधना का वर्णन मैने अपने शब्दों में लिख दिया है। ट्रांसफर आत्माओं से कार्य- जब भी आपको कोई कार्य करवाना हो तो साधक या साधिका श्मशान में जाकर सिद्ध आत्मा को मदिरा, माँस, कलेजी आदि देते है तब साधक का कार्य तुरंत आसुरी शक्ति करती है। आत्माओं का ट्रांसफर केवल अमावस्या की आधी रात को 12 बजे से,शनिवार की रात को 9 बजे से,मंगलवार की रात को 8 बजे से श्मशान भूमि में किया जाता है। जिन साधको को हमारे द्वारा आत्माओ का ट्रांसफर श्मशान में करवाया है उनमें से कुछ साधकों के छोटा सा वीडियो भी अपलोड किया जा रहा है श्मशान का।। चेतावनी- (कुछ लोग मेरी लिखित साधनाओं को अपने ब्लॉग,फेसबुक ,यु tube चैंनल, ग्रुप में अपने नाम से पब्लिश करते है ऐसे महापुरुषों से निवेदन है कि अपनी मेहनत से कमाई साधना को ही पब्लिश करे।) हमारे द्वारा आत्माओं का ट्रांसफर वॉइस कॉल या वीडियो कॉल से ऑनलाइन किया जाता है किंतु साधक या साधिका निर्भीक हो और अकेले शमशान में जाकर आत्माओं से बातचीत कर वचन लेके वापस आये।। इन साधनाओं का दुरुपयोग नही करना चाहिये। जो साधक कामवासना के वशीभूत पिशाचिनियों,अप्सराओ आदि को सिद्ध करना चाहते है उनको भी श्मशान में बैठकर वचनबद्ध करके अपने साथ साधक ले जा सकता है।साधक के सभी कार्य करेगी पत्नी या प्रेमिका रूप में। प्रेम प्रसंग साधक का आत्मिक रूप से होगा अर्थात ये आत्मायें साधक की आत्मा को आज्ञा चक्र से बाहर निकालकर प्रेम प्रसंग करती है जिससे साधक को अनन्त आनंद की प्राप्ति होती है किंतु ये साधक के लिये हानिकारक है,एक साधक को हमेशा अच्छे कार्य करने चाहिये न कि कामकला में डूबा रहे। जब साधक इन आत्माओ से मुक्ति चाहते है या इनको नही रखना चाहते है तो हमारे द्वारा इन आत्माओं को अलग कर दिया जाता है और साधक स्वतंत्र हो जाता है। आत्मा ट्रांसफर के लिये सामग्री- सफेद कपड़े 11 मीटर कुशासन 2 निरमिहि की जड़ 2 (एक साधक के आसन के नीचे दूसरी गले मे) काले पत्थर 11 चौमुखा दीया शराब की बोतल दोरंगा सिंदूर दिशा उत्तर दक्षिण लोबान पंचमुखी उपरोक्त सामग्री से मन्त्र उच्चारण करने पर साधक के आत्माओ के अखाड़े से मन वांछित आत्मा वचन सिद्ध होती है। कुछ साधक प्रेत आत्माओं को अपना शरीर भी सौंप देते है जो अपनी भौतिक इच्छाओ को कई गुना बड़ा कर सकते है जैसे कामवासना,खाना पीना,दौड़ना आदि।। गुरुदेव अशोक कुमार चंद्रा हरिद्वार उत्तराखंड 00917669101100

Friday, May 24, 2019

दिव्य दृष्टि साधना-

दिव्य दृष्टि (श्रीहनुमान) साधना- यह साधना अत्यंत दुर्लभ और प्राचीन है।इस साधना के माध्यम से साधक किसी भी मृत आत्मा,भूत प्रेत आदि इतरयोनियों को आज्ञा चक्र से देख सकता है,अनुभव कर सकता है,उनसे मानसिक रूप से वार्तालाप कर सकता है। इस साधना का सम्बंध आज्ञा चक्र से होता है। साधक हनुमानजी की इस दिव्य दृष्टि साधना को सिद्ध करने के बाद आंखे बंद करकेआज्ञा चक्र पर ध्यान केंद्रित करके जब मानसिक रूप से अपने आसपास की आत्माओं को बुलाता है तो यदि आत्मा उस समय वहां उपस्थित होगी तो तुरंत साधक के आज्ञा चक्र में प्रकट होगी । सभी साधको को अलग अलग रूपो में आत्मायें दिखाई देती हैं जैसे एक ही आत्मा किसी साधक को काली परछाई के रूप में दिखेगी तो किसी को पूर्ण वस्त्र पहने हुये। जिन साधको का आज्ञा चक्र विकसित नही होता है और वे खुली आँखों से आत्माओं जैसे अप्सरा,कर्णपिशाचीनी,परी, जिन्न, प्रेत,यक्षिणी आदि को देखने की जिजीविषा रखते है तो ऐसे साधको की स्थिति मृगमरीचिका की तरह होती है,हिरण की कस्तूरी की तरह होती है। ऐसे साधको को साधना के बड़े बड़े अनुभव होते है किंतु न तो देवी देवता आदि उनको आज्ञा चक्र में दर्शन देते है और न वचन(मानसिक रूपसे ) देते है। ऐसे साधक जीवन भर कड़ी मेहनत ,साधना में करते है किंतु उनका रिजल्ट शून्य होता है। उनको केवल साधना या सिद्धि के समय ऐसे अनुभव होते है जैसे अचानक कमरे के सुगंध तेजी से बढ़ गयी हो,किसी के चलने फिरने की आहट महसूस हो रही हो,कोई साधक के पास बैठा हो,स्त्री के पायलों के घुँघरू की आवाज महसूस हो रही हो,आसन में बैठने पर दिशा बदल जाना अर्थात जब साधक आंखे बंद करके जैसे उत्तर दिशा की और मुख करके मन्त्र जाप कर रहा हो तो कुछ समय बाद साधक का मुख पूर्व,पश्चिम या दक्षिण दिशा में हो जाना। अचानक से दूध के रंग की तरह साधक के चारो तरफ सफेद प्रकाश महसूस होना,किसी अज्ञात ऊर्जा का शरीर मे प्रवेश करना आदि। यह सभी घटनायें साधक के साथ होती है और साधक को युवावस्था से वृद्धावस्था आ जाती है किंतु एक भी सिद्धि वचनों से सिद्ध नही होती है।सबमे केवल अनुभव होता है। जिस तरह एक मनुष्य बिना नेत्रज्योति के नेत्रहीन है उसी तरह साधक बिना आज्ञाचक्र जाग्रत किये सभी साधना व्यर्थ है।उसका परिश्रम इस तरह से व्यर्थ होता है जैसे किसी छलनी में पानी भरने का प्रयास।। जो साधक खुली आँखों से आत्माओं को देखने की इच्छा से साधना करते है वो भी सब सफल नही होते है। ईश्वर ने सभी प्राणियों में आज्ञाचक्र दिया जिसके माध्यम् से आत्माओ से संपर्क ,बातचीत,साधक की परीक्षा ,वचन सब होते है।खुली आँखों से नही होता है। जब स्वयं सभी देवी देवता आँखे बंद कर आज्ञा चक्र के माध्यम से किसी दृश्य को ,घटना आदि को जानते है तो फिर ये खुली आँखों से दिखने का अर्थ कहाँ तक सत्य है। जब साधक के पास दिव्य दृष्टि होती है और साधक को सिद्धि करता है तो साधक की 90% आत्मा मन्त्र के देवी या देवता के होती है और 10% आत्मा साधक के शरीर मे होती है उस स्थिति में साधक की परीक्षा मन्त्र के देवी या देवता लेते है जैसे साधक को कहेंगे इस पहाड़ से कूद जाओ आदि आदि ,यदि साधक सफल रहा तो अंतिम दिन साधक के वचन हो जाते है और साधक जनमानस की समस्या का समाधन अपनी सिद्धि के माध्यम से करता है। जो साधक खुली आँखों से आत्माओ को देखना चाहते है उनके लिये नीम के पेड़ पर आम लगाना जैसा है। हमारा उद्देश्य साधको को सही ज्ञान प्राप्त कराना है न कि भीड़ बढ़ाना। दिव्य दृष्टि साधना किसी भी मंगलवार से शुरू कर सकते है।यह साधना 3 दिवसीय है। यह साधना बन्द कमरे में कई जाती है। साधक को माथे पर लाल सिंदूर का तिलक लगाना चाहिए ।लालवस्त्र धारण करने चाहिये। कुशा का आसन होना चाहिए। रुद्राक्ष की माला 108 दानो की सिद्ध हुई होनी चाहिये। साधक अपने सामने लकड़ी की चौकी स्थापित करे,उसके बाद उस पर लाल वस्त्र बिछाय। जल का ताम्र कलश बायीं तरफ रखे। हनुमान जी के फोटो को कांसे की थाली में रखे।फूलो की माला,देशी घी का दीया, धूपबत्ती, कपूर,फल,फूल ,मिठाई,कस्तूरी,लौंग,इलायची,सुपारी,पान का बीड़ा (मीठा),चमेली का तेल,सिंदूर चढ़ाय। पवित्रीकरण,वास्तुदोष पूजन,गुरु मन्त्र,शिव मन्त्र ,संकल्प, सिद्धि मन्त्र जाप करे।जाप के बाद हनुमान चालीसा,आरती,क्षमा याचना करे।बन्द आंखों से जापकरे।जाप पूर्ण होने पर साधक को आज्ञाचक्र में प्रकाश दिखाई देना शुरू हो जाता है। इससे साधक को दिव्य दृष्टि प्राप्त हो जाती है। मृतात्माओं से संपर्क हो ना शुरू हो जाता है। मन्त्र-तुलसीदास सदा हरि चेरा,कीजै नाथ ह्रदय में डेरा पवनतनय संकट हरन मंगल रूप तेरा काटो हे भगवान चारो चौरासी का फेरा जय श्रीराम।।जय श्रीराम गुरु को कोटि कोटि प्रणाम।। दीया- सिद्धि के लिये विशेष प्रकार से दीपक का निर्माण किया जाता है।।। जैसे पीली मिट्टी आदि का प्रयोग किया जाता है। जो साधक दिव्य दृष्टि साधना सिद्ध करना चाहते है ,वो साधना सिद्ध कर सकते है। योग्य साधक दीक्षा ग्रहण कर दिव्य दृष्टि साधना सिद्ध कर भविष्य की अन्य साधनाओ को पूर्ण सिद्ध और वचनसिद्धि कर सकते है। गुरुदेव अशोक कुमार चंद्रा हेल्पलाइन। 00917669101100 00918868035065 00919997107192 हरिद्वार
उत्तराखण्ड भारत (दिव्य दृष्टि दीक्षा राशि---3100 ₹)

Saturday, March 9, 2019

पाताल भैरवी सिद्धि

पाताल भैरवी साधना-- यह साधना 40 दिन की होती है।इसको श्मशान की अंतिम चिता के ऊपर बैठकर सिद्ध किया जाता है। इस साधना को अमावस्या या त्रयोदशी से शुरू करते है। साधक को सफेद वस्त्र ,दिशा उत्तर,सिद्ध कणिका माला से ,सिंदूर का तिलक लगाना चाहिए। भोग में सफेद बर्फी,चावल,मदिरा ,आधा किलो माँस बकरे का देना चाहिए। सिद्धि के समय अनेक उपद्रव होते है। श्मशान की जमीन का अचानक फटना,बड़े बड़े डरावने ब्रह्मराक्षस ,दैत्य,नरमुंड आदि दिखाई देना आदि होते है। 40 वे दिन भूमि फाड़ कर पाताल भैरवी ऊपर आती है।
साधक यदि डरा नही तो वचन देकर षट्कर्म करती है। यदि साधक भयभीत हो गया तो उस समय साधक पाताल भैरवी का महा भयानक रूप देखकर पागल हो सकता है। मन्त्र- ॐ पाताल भैरवी त्रिकाल कल्प ॐ तरु तरु स्वाहा ॐ कल्प कल्प स्वाहा।।

Tuesday, February 19, 2019

चमत्कारी 21 नई सिद्धियाँ

वर्ष 2019 में पूर्व 51 साधनाओं के साथ 21 नई साधनाओं का समावेश किया गया है ,जो क
लयुग में पूर्ण सिद्ध और फलदाता सिद्धियाँ है।इनका विवरण निम्न है- 1 माता विन्ध्यवासिनी सिद्धि 2 भैरव सिद्धि 3 हनुमान सिद्धि 4 माता रक्ता देवी साधना 5 हनुमान सिद्धि भाग 1 6 हनुमान सिद्धि भाग 2 7 चक्रेगमालिनी सिद्धि 8 शिवजी वरदान सिद्धि 9 आक वीर सिद्धि 10 कामाख्या देवी वचन सिद्धि 11 बावन वीर सिद्धि 12 चौसठ योगिनी सिद्धि 13 मसान सिद्धि 14 श्रीराम सिद्धि 15 कर्णपिशाचिनी सिद्धि 16 महाकाली सिद्धि 17 तारादेवी सिद्धि 18 उग्रतारा देवी सिद्धि 19 रम्भा अप्सरा सिद्धि 20 यक्ष कुमारी सिद्धि 21 शिवकृत्या सिद्धि 22-हमजाद सिद्धि 23-श्मशान काली सिद्धि 24-दक्षिणा काली सिद्धि 25-बगलामुखी सिद्धि 26-धूमावती सिद्धि 27-बेताल सिद्धि 28-2 भूत सिद्धि 29-6 भूत सिद्धि 30-वट वृक्ष भूत सिद्धि 31-वार्ताली देवी सिद्धि 32-पंचांगुली देवी वरदान सिद्धि 33-रंजिनी अप्सरा सिद्धि 34-लाल परी सिद्धि 35-ग्रहण कालीन डाकिनी सिद्धि 36-शांकिनी सिद्धि 37-ब्रह्मराक्षस सिद्धि 38-पिशाच सिद्धि 39-वज्रयोगिनी सिद्धि 40-श्रुतदेवी सिद्धि 41-घण्टाकर्णी देवी सिद्धि 42-कपालिनी सिद्धि 43-मासिक धर्म दोष निवारण स्त्री (अष्टविनायक सिद्धि)दीर्घ साधना 44-गौ जोगिनी सिद्धि 45-सुग्रीव साधना 46-लौंग मोहिनी सिद्धि(इशमाईल जोगी वरदान ) 47-वायुगमन सिद्धि 48-(रावण सिद्ध) स्त्री वशीकरण काजल सिद्धि 49-सूर्य देव सिद्धि(श्रीकृष्णा सिद्ध) 50-शव साधना(वीर-साधन) 51- मृत आत्मा आवाहन 52-पाताल भैरवी सिद्धि 53-ऋद्धि-सिद्धि साधना 54-शून्यमार्ग मिठाई प्राप्ति सिद्धि 55-श्राप और वरदान सिद्धि 56-देवी स्वर्णकाली सिद्धि 57-देवी अमर सिद्धिनी सिद्धि 58-श्रीगणेश वरदान सिद्धि 59-देव पार्श्व यक्ष सिद्धि 60-सौंदर्य प्रेमिका (भैरवी )सिद्धि 61-देव क्षेत्रपाल सिद्धि 62-देवी पद्मावती सिद्धि 63-देवी चंद्र(चण्ड) योगिनी 64-देवी स्वप्नेश्वरी सिद्धि 65-देवी गुह्यकाली सिद्धि 66-देवी महाभद्रकाली सिद्धि 67-बबूल भूत सिद्धि 68-बलिष्ठ देव सिद्धि 69-देव भैरव (शाबर)सिद्धि 70-देव (ग्रहणकालीन) भैरव सिद्धि 71-श्मशान भैरव मोहिनी सिद्धि 72-असुर सिद्धि गुरुदेव अशोक कुमार चन्द्रा हरिद्वार उत्तराखण्ड भारत हेल्पलाइन- 00917669101100 00918868035065 00919997107192

Friday, January 18, 2019

2019 सिद्धि समय

वर्ष 2019 सिद्ध मन्त्र साधना समय-- जनवरी- 21 पूर्णिमा सोमवार फरवरी- - 4 सोमवार अमावस्या 19 मंगल पूर्णिमा मार्च--- 4 सोमवार शिवरात्रि 6 बुधवार अमावस्या 17 रविवार पुष्य 20,21 बुधवार ,बृहस्पतिवार होली अप्रैल---- 5 शुक्रवार अमावस्या 6 शनिवार चैत्र नवरात्रि 14 रविवार पुष्य 19 शुक्रवार पूर्णिमा हनुमानजयंती मई----- 4 शनिवार अमावस्या 11 शनिवार पुष्य 15 बुधवार मोहिनी एकादशी 18 शनिवार पूर्णिमा जून------ 3 सोमवार अमावस्या 17 सोमवार पूर्णिमा जुलाई------- 2 मंगलवार अमावस्या 16 मंगलवार पूर्णिमा ,चंद्रग्रहण,गुरुपूर्णिमा 30 मंगलवार शिवरात्रि अगस्त-------- 1 बृहस्पतिवार अमावस्या 15 बृहस्पतिवार पूर्णिमा रक्षाबंधन 24 शनिवार श्रीकृष्णा जन्माष्टमी 30 शुक्रवार अमावस्या सितम्बर--------- 28 शनिवार अमावस्या 29 रविवार शारदीय नवरात्रि अक्टूबर---------- 13 रविवार पूर्णिमा 27,28 रविवार,सोमवार अमावस्या दीपावली नवम्बर----------- 12 मंगलवार पूर्णिमा 26 मंगलवार अमावस्या दिसम्बर------------ 12 बृहस्पतिवार पूर्णिमा मृगशिरा 15 रविवार पुष्य 26 बृहस्पतिवार अमावस्या उपरोक्त समय सभी तरह की मन्त्र सिद्धियों को सिद्ध करने का समय है।साधक सन 2019 में इन सिद्ध योग से सिद्धियाँ प्राप्त कर सकते है। गुरुदेव अशोक कुमार चन्द्रा हरिद्वार,उत्तराखण्ड हेल्पलाइन 00917669101100 00919997107192 00918868035065 Email- vishnuavtar8@gmail.com

Tuesday, November 20, 2018

आत्मा आवाहन देह विद्या

आत्मा आवाहन देह विद्या- इस विद्या में साधक मन्त्र शक्ति के माध्यम से आत्माओ के शिकार स्त्री या पुरुषको अपने सामने बैठाकर प्रेत आत्मा या अन्य आत्माओ को उसके शरीर पर बुलाते है और वार्ता करते है । इस अवस्था मे जिस शरीर मे यह आत्मा आती है उसकी आत्मा सुप्त अवस्था में चली जाती है और शरीर मे प्रेत आत्मा जाग्रत अवस्था मे आ जाती है।फिर योग्य साधक उस आत्मा से सब कुछ मालूम करके उस आत्मा को पुनर्जन्म के लिये पृथ्वीलोक से विष्णुलोक भेज सकता है अथवा मन्त्र शक्ति से उस आत्मा को किसी बोतल में कैद कर सकता है अथवा उस आत्मा की कोई इच्छा अधूरी है और जायज है तो उसे पूरी करा सकता है अथवा ऐसी आत्मा जिसकी हत्या हुई हो और वह बदला लेना चाहती हो अपने दुश्मनों से तो उस को खुला छोड़ देते है जिससे वह अपने दुश्मनों से बदला ले सके और फिर उस आत्मा को पुनर्जन्म के लिये देव शक्ति का प्रयोग कर विष्णुलोक भेज सकते है। इस वीडियो में भी एक ऐसी आत्मा को बुलाया गया है और जो अपने शत्रुओं से बदला लेगी और उसका बदला पूर्ण होने पर उसको मुक्ति दे दी जाएगी। इसके अतिरिक्त यह भी नोसिखिय साधको को पता चल जाएगा कि शरीर मे आत्मा को बुलाकर कैसे बात की जाती है। यह साधना कुछ मन्त्र जप से सिद्ध की जाती है।यदि साधक किसी खतरनाक आत्मा को शरीर पर बुलाता है तो उसे हानि भी हो सकती है कभी कभी आत्मा शरीर मे आकर हमला भी कर देती है।।इसका दूसरा माध्यम आज्ञा चक्र है जिसमे साधक मानसिक रूप से आज्ञाचक्र के माध्यम से आत्मा से बात कर सकता है। इसमे एक लड़की की आत्मा अपने माता पिता से बात कर रही है,अपनी मृत्यु का कारण उन्हें बताया।। इस विद्या में साधक मन्त्र पूजा का विधान कर साध्य के सिर पर कुछ चावल डालता है जिससे उसके अंदर प्रेतात्मा प्रकट हो जाती है ...गुरुदेव अशोक कुमार चन्द्रा हरिद्वार उत्तराखण्ड भारत हेल्पलाइन 00917669101100

Wednesday, October 24, 2018

श्रीगणेश दिव्य साधना


श्रीगणेश साधना- यह साधना 9 दिवसीय है।इस साधना में साधक को गणेश जी के दर्शन होते है और वचन होते है। जिन साधको का आज्ञा चक्र विकसित है उनको श्रीगणेश जी के दर्शन और वचन होते है,जिन साधको का आज्ञा चक्र विकसित नही है ,उनको न तो दर्शन होते है और न ही वचन होते है,ऐसे साधको को केवल थोड़ा बहुत अनुभव होता है जैसे कमरे में किसी के चलने की आवाज ,सुगंध का अचानक बढ़ जाना,किसी के पास बैठने की अनुभूति आदि अनेक तरह से महसूस होता है। यह साधना गणेश चतुर्थी को शुरू की जाती है। इस साधना में पहले दिन 100 माला करनी होती है,दूसरे दिन 100 माला हवन करना होता है,तीसरे,चौथे,पाँचवे, छठे,सातवे ,आठवें, नवे दिन मन्त्र जप करना होता है। यदि साधक 9वे दिन भी मन्त्र पूर्ण कर लेता है तो गणेश जी साधक को दर्शन देकर वरदान देते है । जिन साधको का आज्ञा चक्र विकसित नही है उनको पहले आज्ञा चक्र अर्थात दिव्य दृष्टि सिद्धि करनी चाहिये जिससे उनका आज्ञा चक्र खुल जाए और आलौकिक दिव्य आत्माओ को देख सके और दिव्य सिद्धियाँ प्राप्त कर सके। साधना को एकांत कमरे में किया जाता है। 9 दिन तक साधक को फला हार,दूध का सेवन करना चाहिये। मन्त्र जाप आंखे बंद करके करना चाहिये। साधक को भयानक दृश्य आज्ञाचक्र के माध्यम से दिख सकते है किंतु उठकर भागे नही,यह साधक की परीक्षा होती है। साधना के दिन साधक को नहाधोकर माथे पर लाल चंदन का तिलक लगाय, पीले वस्त्र धारण करे।आसन पर बैठ जाए। कमरे में चन्दन का इत्र, परफ्यूम,सेंट जमीन और दीवारों पर भी छिड़क दें। अपने सामने पूजा की चौकी पर वस्त्र बिछाकर जल का कलश रखे और काँसे की थाली में 2 फल, फूल,मिठाई रखे,गणेश जी का खड़ी मुद्रा का फोटो रखे।देशी घी का अखण्ड दिया जलाय।यह दिया सूर्य के प्रकाश में जलाया जाता है। साधक अपना पवित्रीकरण ,सामग्री पवित्रीकरण,गुरु मंत्र,संकल्प,सुरक्षा ,सिद्धि मन्त्र शुरू करें। 100 माला जप रूद्राक्ष की माला से करे। मन्त्र जप के बाद साधक गणेश जी की आरती करें और अगले दिन नैवेद्य को मंदिर या गाय को दे दे। यह क्रिया 9 दिन करे। इस साधना से साधक को वशीकरण शक्ति भी प्राप्त होती है । इस साधना में साधक को गणेश जी प्रतिमा पीली मिट्टी से बनानी चाहिये। मन्त्र- एकदंत महा वीर मन्मो पुरुष सिद्ध यंत्रसर्द्ध कार्याणि त्वम प्रसादत गणेश्वरः हेल्पलाइन-00917669101100

Tuesday, September 18, 2018

नवरात्रि सिद्धियाँ अक्टूबर 2018

नवरात्रि कालीन सिद्धियाँ- माता विंध्यवासिनी साधना- दिव्य दृष्टि ,भूत, भविष्य,वर्तमान(त्रिकालदर्शी),षट कर्म।।। माता अम्बिका देवी साधना-दिव्यदृष्टि,त्रिकालदर्शी माता तारा देवी साधना- दिव्यदृष्टि, वरदान,अस्त्र प्राप्ति,षट्कर्म।। माता उग्रतारा साधना- अस्त्र प्राप्ति,वरदान,दिव्यदृष्टि माता महाकाली साधना- वरदान,दिव्यदृष्टि,त्रिकालदर्शी, अस्त्र प्राप्ति,षट्कर्म, कुण्डलिनी जागरण।तांत्रिक बांधा निवारण।। माता घण्टाकर्णी यक्षिणी साधना- स्वप्नसिद्धि,षट्कर्म, तांत्रिक उपचार।आत्मा विहार।। माता शिवकृत्या साधना- त्रि कर्म,तांत्रिक बांधा निवारण।। हमजाद साधना- मिट्टी का हमजाद,यंत्र स्थापना,त्रिकालदर्शी।। कर्ण पिशाचिनी साधना- त्रिकालदर्शी।। माता श्रुतदेवी साधना- आर्थिक लाभ,रोगमुक्ति,शत्रुदमन।। माता रक्तादेवी साधना- षट्कर्म।। वीर सिद्धि- षट्कर्म।। गुरुदेव अशोक कुमार चन्द्रा हेल्पलाइन 007669101100 008868035065 009997107192

Tuesday, September 11, 2018

नवरात्रि साधना माता श्रुतदेवी सिद्धि

नवरात्रि सिद्धि माता श्रुत देवी साधना- यह साधना नवरात्रों में संपन्न की जाती है इस साधना के द्वारा साधक के यहां धन का बाहुल्य हो जाता है । इसके बाद साधक के सभी कार्य पूर्ण हो जाते हैं ।साधक के धन आगमन का मार्ग खुलता है ,स्वास्थ्य परिवार का अच्छा और बाहरी शत्रुओं से निजात मिल जाती है । यह साधना नवरात्रि के प्रथम रात्रि को 10:00 बजे के बाद शुरू की जाती है और अंतिम नवरात्रि की रात्रि तक यह साधना की जाती है। मंत्र जाप पूर्ण होने के बाद नवे नवरात्रि में साधना का दशांश हवन किया जाता है अर्थात नवरात्रि में मंत्र जाप के बाद उसी समय दशांश हवन किया जाता है साधक को माता सपने के माध्यम से या आज्ञा चक्र के माध्यम से दर्शन देती हैं और आशीर्वाद प्रदान करती हैं यह साधना बंद कमरे में की जाती है ।कमरे में नया रंग होना चाहिए यह रंग लाल पीला या गुलाबी हो सकता है या सफेद रंग भी इसमें कर सकते हैं ।कमरे में फर्श होना चाहिए अथवा टाइल्स हो सकती हैं और कमरे में सब जगह परफ्यूम चंदन का ,गुलाब का ,चमेली का, मोगरा का, का छिड़काव करना चाहिए इस साधना के लिए साधक को बंद कमरे में रात्रि 10:00 बजे प्रवेश करना चाहिए और माता के नौ व्रत धारण करने चाहिए शाम को माता का पूजन करना चाहिए उसके बाद सिद्धि विधान शुरू करना चाहिए। इस साधना में साधक को नहा धोकर सर्वप्रथम सफेद वस्त्र या लाल वस्त्र धारण करना चाहिए उसके बाद साधक को माथे पर लाल चंदन का तिलक लगाना चाहिए सफेद आसन या लाल आसन पर बैठना चाहिए उसके बाद साधक को रुद्राक्ष की माला जो गोमुखी में रखी होती है मंत्र जाप करना चाहिए माला को पवित्रीकरण करने के लिए साधक को माला को सर्वप्रथम गंगा जल में स्नान कराना चाहिए उसके बाद लाल सिंदूर से माला के सभी धानों पर लगा देना चाहिए । उसके बाद माला को भगवान शिव का ध्यान करते हुए गोमुखी में रख दे इस प्रकार से माला का पूर्ण शुद्धिकरण हो जाता है। साधक को 6 मीटर कपड़े की धोती धारण करनी चाहिए और 2 मीटर कपड़े को चौकी पर बिछाना चाहिए और 2 मीटर का कपड़ा आसन के ऊपर बिछाना चाहिए ।साधक को बाजोट के ऊपर कपड़ा बिछाना चाहिए। कपड़े के ऊपर कांसे की थाली रखनी चाहिए और उसके बराबर में तांबे के कलश में जल भरकर रखना चाहिए और थाली में गुलाब के फूलों की पंखुड़ियां बिखेरनी चाहिए और उन पंक्तियों में माता दुर्गा अथवा माता सरस्वती का फोटो स्थापित करना चाहिए । फोटो पर गुलाब के फूलों की माला (लाल गुलाब के फूलों की माला )चढ़ानी चाहिए । उसके अतिरिक्त माता के फोटो के आगे देसी घी का दिया जलाना चाहिए । माता को भोग में जो नैवेद्य चढ़ाया जाता है उसमें दो फल , दो मावे की मिठाइयां रखनी चाहिए माता को सुगंधित अगरबत्ती धूप बत्ती अर्पण करनी चाहिए । अपने वस्त्रों पर और पूजा के बाजोट के वस्त्रों पर चंदन का सुगंधित सेंड छिड़कना चाहिए इसमें आप अन्य सेंट या इत्र या परफ्यूम जैसे मोगरा ,चमेली, गुलाब या चंदन भी ले सकते हैं अगर सभी तरह के सेंट परफ्यूम अथवा इत्र आपके पास है तो साधना में साधक पूर्ण रुप से सफल होता है। सभी सामग्री लगाने के बाद साधक को उत्तर दिशा की ओर मुख करके सर्वप्रथम अपने शरीर का पवित्रीकरण करना चाहिए। उसके बाद सामग्री का पवित्रीकरण करना चाहिए ।उसके बाद साधक को वास्तु दोष पूजन करना चाहिए ।वास्तु दोष पूजन के बाद साधक को गुरु मंत्र एक माला जाप करना चाहिए उसके बाद साधक को जिस देवी या देवता की सिद्धि कर रहा है उनके मंत्रों का संकल्प लेना चाहिए कि कितने दिनों की सिद्धि करनी है और कितने मंत्र जाप संपूर्ण करने हैं संकल्प में साधक को अपने माता पिता का नाम अपना नाम अपना स्थान जहां पर साधना कर रहा है ,बोलना चाहिए और कौन से दिन से साधना कर रहा है उस दिन का नाम भी बोलना चाहिए। साधना का उद्देश्य क्या है? सिद्धि करके साधक क्या करना चाहेगा ? उसको भी संकल्प में बोलना चाहिए। उसके बाद अपने इष्ट देवी या देवता का ध्यान करके साधक को सिद्धि मंत्र का जाप शुरू कर देना चाहिए । सिद्धि मंत्र का जाप करते समय साधक का ध्यान तीन अवस्थाओं में होना चाहिए जब साधक बंद आंखें करके मंत्र जाप शुरू करता है तो प्रथम ध्यान साधक का मंत्र के उच्चारण और मंत्र की संख्या पर होना चाहिए दूसरा ध्यान साधक का बंद आंखों में आज्ञा चक्र के बीच रखना होता है जिस पर ज्यादा जोर नहीं देना केवल अंधकार में ही ध्यान से देखना होता है लेकिन जोर ज्यादा नहीं देना अगर दर्द होने लगे आंखों के बीच तो उसका मतलब है की साधक ज्यादा जोर लगाकर मानसिक रूप से आज्ञा चक्र पर प्रभाव डाल रहा है तो वह कार्य गलत हो जाता है और सिद्धि नहीं मिलती । साधक को चाहिए कि साधक आज्ञा चक्र के मध्य थोड़ा सा अपना बंद आंखों से अंधकार में ध्यान लगाए किंतु इतना अधिक ध्यान भी ना लगाएं की आज्ञा चक्र अर्थात माथे में दर्द होने लगे। जैसे हम सामान्य दृष्टि से किसी को देखते हैं इसी तरह से उस अंधकार में ध्यान लगाना होता है। उसके बाद जो साधक का तीसरा ध्यान होता है मन का जिसमे साधक आज्ञा चक्र के अंधकार में जिस देवी या देवता का साधना कर रहा है,उस आज्ञा चक्र मे उनके प्रतिबिंब की कल्पना करनी चाहिए इसके माध्यम से साधक का ध्यान अन्य कहीं पर नहीं होना चाहिए और साधक साधना में पूर्ण सफलता प्राप्त करता है। साधक जब मंत्र जाप करता है उस समय अनेक प्रकार के अनुभव साधक को होते हैं, मंत्र जॉब के समय जो साधक को अनुभव होते हैं उन अनुभवों में साधक को ऐसा महसूस होता है जैसे कि उसके कमरे में कोई शक्ति का आवागमन हो रहा है या कोई स्त्री साधक के आसपास घूम रही है, स्त्री रूप अर्थात माता का होता है तो उसका साधक को अनुभव होता है । यदि साधक के पास दिव्य दृष्टि अर्थात प्रथम साधक के पास पहले से सिद्धियां होती हैं तो साधक प्रथम दिन से ही माता के दर्शन आज्ञा चक्र से कर सकता है और उनको मानसिक रूप से नमस्कार कर सकता है यदि साधक नया है और प्रथम बार साधना कर रहा है और आज्ञा चक्र विकसित नहीं है तब साधक को आभास होगा और साधक को जब आभास होगा तो उस अवस्था में साधक के कमरे में किसी के चलने फिरने की आहट महसूस होगी ऐसा प्रतीत होगा जैसे कोई उसके पास आकर बैठ गया है या कोई आस पास आकर खड़े होकर घूम रहा है इसके अतिरिक्त साधक को अपने कमरे में सुगंध बढ़ती हुई महसूस होगी जैसे की सुगंध महसूस होती है बढ़ जाती है अचानक इसके अतिरिक्त एक चीज विशेष होती है इस साधना में माता श्रुतदेवी साधना में यह विशेष होता है कि साधक को ऐसा भी प्रतीत होता है जैसे कोई छिपकली कमरे की दीवारों पर या या आसपास घूम रही हो साधक जब रात को सो जाता है ,साधना स्थल पर तो स्वप्न में अनेक प्रकार के दृश्य दिखते हैं ,साधक को डराया भी जा सकता है जिससे साधक को डरना नहीं होता और डर के कारण बहुत से साधक साधना नहीं कर पाते और उस कमरे में फिर नहीं सोते यह सभी परीक्षाएं माता के द्वारा साधक की होती हैं यदि साधक भयभीत नहीं हुआ तो माता साधक के सभी कार्य सिद्ध करती है। मंत्र जहां पूर्ण होने के बाद साधक ,माता को नैवेद्य अर्पण करना चाहिए अर्थात जो थाली में रखा होता है उसको उठाकर माता के चरणों में रख देना होता है यदि मिठाई है तो मिठाई को माता के चरणों में रख दीजिए और यदि फल है तो फल को भी माता के चरणों में अर्पण कर दीजिए और माता से विनती कीजिए कि माता मैं आपकी पूजा साधना कर रहा हूं ,निस्वार्थ कर रहा हूं और यदि साधना में मुझसे कोई त्रुटि हुई हो तो उसके लिए मुझे क्षमा कीजिए जैसे भी मेरे यथासंभव प्रयास से उस तरीके से मैं यह साधना आपकी संपन्न कर रहा हूं उसके उसके बाद साधक को वही पर सो जाना चाहिए और सोने के बाद साधक को सुबह उठकर सर्वप्रथम माता का दिया जलाना चाहिए और उनका थोड़ा सा ध्यान करने के बाद अपना जो भी नित्य कर्म है वह करना चाहिए और एक से 2 घंटे बाद आकर सुबह को 8:00 या 9:00 बजे के लगभग जो सामग्री माता को नैवेद्य रूप में चढ़ाई गई थी उसको उठाकर गाय को खिला दें अथवा किसी मंदिर में पहुंचा दें माता के, अथवा यदि यह भी साधक नहीं कर सकता तो किसी निर्जन स्थान पर यह सामग्री रख सकता है साधक को भोजन किस तरह का करना चाहिए ? इस साधना में साधक को फलाहार करना चाहिए अर्थात साधक को फल मिठाइयों का सेवन करना चाहिए क्योंकि साधक के नवरात्रि में व्रत भी रहेंगे तो इसलिए विशेष यही रहेगा कि जो व्रत का सामग्री होता है उसी का केवल साधक सेवन करें। साधक की जब 9 दिन की साधना पूर्ण हो जाती है तो इस साधना में अनेक प्रकार के जो अनुभव है साधक को होते रहते हैं और इनसे मिलते जुलते अनुभव मन्त्र जाप के समय होते रहते हैं। यदि साधक डरता नहीं भयभीत नहीं होता है तो साधना को पूर्ण कर लेता है तो उसके बाद साधक को यदि आज्ञा चक्र साधक का विकसित हैं और पहले से साधक के पास दिव्य दृष्टि है तो नौवें दिन नौवें दिन ही माता श्रुतदेवी सफेद वस्त्र धारण किए हुए गले में रुद्राक्ष की माला पहने हुए साधक के सामने प्रकट होती हैं और साधक वर मांगने के लिए कहती हैं अर्थात साधक को जो वचन चाहिए या जो वर चाहिए मांगने के लिए बोलती हैं ,साधक को उस समय तुरंत माता से वचन ले लेना चाहिए तीनों वचनों में साधक को अपनी आर्थिक स्थिति को ठीक करने बीमारियों से परिवार की रक्षा के लिए और धन धान्य से पूर्ण होने के लिए वचन मांगना चाहिए यह माता जब साधक को वचन देती हैं और आशीर्वाद देती हैं तो एवमस्तु कहती है । इसका अर्थ होता है की साधक को पूर्ण रुप से फल की प्राप्ति हो चुकी है। इसके बाद साधक का कार्य पूर्ण हो जाता है जिन साधको का आज्ञा चक्र विकसित नही है जो नए साधक है उनको माता सपने में दर्शन देती है।। मन्त्र- ॐ नमो भगवती श्रुतदेवी हंसवाहिनी त्रिकालनिमित्त प्रकाशिनि सत भावे सत भाषे असत का प्रहार करें ॐ नमो श्रुतदेवी स्वाहा। गुरुदेव अशोक कुमार चंद्रा हरिद्वार उत्तराखण्ड हेल्पलाइन 009176669101100 00918868035065 00919997107192

Monday, August 6, 2018

Past-present-future sadhna


GODDESS VINDHYAVASINI SADHANA Past, present and future divine vision sadhana. Through this sadhana a person(Men and women) can see their own past, present, future.Goddess vindhyavasini powers enters the body of a practioner and goddess provides the divine vision and is the combination of Goddess vindhyavasini, Goddess Mahakali,Goddess Sarasvathi, Goddess Mahalakshmi. Before the creation of this Bramhand (universe) Goddess Vindhyavasini exsisted. When this Bramhand gets destroyed Goddess Vindhyavasini will be still exsisting. Practioner who attains this siddhi they have to give a visit to a temple which is in Uttar Pradesh state (India),zilla Mirazapur.This Goddess she takes care of sadhak/sadhika (practioner) as her own son and daughter and assists them to get moksh. In this sadhana eating meat and drinking alcohol/drugs are prohibited. After attaining this siddhi, in case in your present life if there is possibility of ay mishaps/accidents , through this siddhi it will help you to see the future through dreams and gives you the guidance to cautious/careful. Real life incidence of people who attained siddhi : When this vindhyavasini sadhana was in done in Rajasthan by one of the person he achieved siddhi. After few days this person wanted to go out for some important work, he saw in his dreams that in the car which he was travelling both the tiers got punctured and car got toppled due to loss of control and his friends who went in the care lost control due to the punctured tyres and got injured. After seeing this incidence he decided not to go. This siddhi helped him save himself from this accident and be safe by seeing the future. A young sadhika (practitioner) who was from Himachal Pradesh when she had attained siddhi, soon after three months goddess showed her future which she could not believe it. She had applied for the job in Delhi in a private company. One night before could dream she received a call from this private company saying that she has been selected for the job..After this news at night in her dreams she saw that goddess is showing her future that in the company where she got a job and was working there a manager calls her to his personal cabin and mixes something in the tea and offered her and he started misbehaving with her. When she opposed this behavior, the manager told her that you will be getting salary for this kind of work and her salary would be around 20-25 k per month. She woke up from her scary dream and started to wonder about the unexpected event. Once when she came to know about her future in this company she cancelled going to this job and she received many calls from this private company but she never joined this company because she came to know how her future will be in this company by the grace of goddess who showed this young women's future in her dreams. Other than this there are many more incidence where sadhak has attained siddhi through sadhana. If you attain this vindhyavasini siddhi particularly men and women, they can not get influenced and will not get affected by black magic, muslim tantr, shamshani (graveyard) tantr. through this vindhyavasini siddhi you can sit and pray to goddess vindhyavasini with closed eyes can foretell other people's past, present and future. Before you could go for travelling, or if you are planning to do any important work, you can sit and concentrate on this goddess vindhyavasini and can view future to protect yourself from any mishaps. GURUDEV-ASHOK KUMAR CHANDRA HARIDWAR UTTRAKHAND INDIA. HELPLINE- 00917669101100 00918868035065 00919997107192 E-mail vishnuavtar8@gmail.com

Monday, July 30, 2018

पत्रिका सदस्य एकवर्षीय


जो साधक पत्रिका के माध्यम से साधना करना चाहते है, अपना पूरा नाम ,माता पिता का नाम,पूरा पता पिनकोड सहित भेज सकते है। साधना का पूर्ण विवरण और सिद्ध विधान पत्रिका में दिया गया। इधर उधर भटकने की जरूरत नही है साधको को। सिद्धि कैसे सिद्ध करे पूर्ण विवरण दिया गया है।यह पत्रिका अंक भाग 1 श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से उपलब्ध होगा। पत्रिका में केवल उन्हीं सिद्धियों को दिया गया है जो साधन मात्र से सिद्ध होकर साधक को उन्नति के मार्ग पर ले जाती है।इच्छुक साधक सदस्यता धारण कर साधना का लाभ ले सकते है।इन साधनाओ में किसी भी तरह के यंत्र की जरूरत नही है।कोई भी साधारण मनुष्य इनको सिद्ध कर सकता है। गुरुदेव अशोक कुमार चन्द्रा हरिद्वार उत्तराखण्ड हेल्पलाइन 00917669101100 00918868035065 00919997107192

Thursday, July 19, 2018

विरहना पीर साधना


बिरहना पीर साधना- यह साधना 40 दिन में सम्पन्न की जाती है। यह साधना बन्द कमरे में रात्रि 12 बजे से सपन्न की जाती है। कमरा एकांत में होना चाहिये। साधक रात्रि को मन्त्र जाप करे और पूजन करके उसी कमरे में सो जाय। यह साधना ग्रहणकाल में शुरू की जाती है। कमरे में फर्श दीवारों पर ,आसन, चौकी पर,अपने वस्त्रों पर साधक चमेली का इत्र ,सेंट,परफ्यूम छिड़क ले। पूर्ण कमरा सुगंधमय हो जाय। साधक सफेद वस्त्र पहनकर सफेद आसन पर बैठे। रुद्राक्ष माला से जाप करे। देशी घी,लोबान,बतासे,लौंग की धूप रोजाना साधना काल मे करें। चमेली की अगरबत्ती,देशी घी का चिराग जलाए। चमेली के फूल चढ़ाए। देशी घी में बने हलवे का भोग लगाय, सफेद मिठाई शुद्ध मावे की रखे। 2 फल रखे। साधक अपने शरीर का पवित्रीकरण करे। सामग्री का पवित्रीकरण करे। वास्तुदोष पूजन करे। साधना के अंतिम दिन विरहना पीर (वीर)साधक को दर्शन देते है और अपने साधक को वचन देते है।ऊपरी चक्कर,भूत प्रेतों आदि की समस्याओं का समाधान पलभर में कर देते है। यह भी विष्णु जी की शक्ति से कार्य करते है। भोजन में साधक को 2 समय करना चाहिए। हरी सब्जियां,दालें,रोटी चावल,मिठाई,फलों का सेवन करें। दिशा पश्चिम होनी चाहिये। मंत्र---- पीर विरहना फूल विरहना धुँ धुँकार सवा सेर का तोसा वाय अस्सी कोस का धावा करे। सात सौ कुन्तक आगे चले सात सौ कुन्तक पीछे चले छप्पन सौ छुरी चले बावन सौ वीर चले जिसमे गढ़ गजनी का पीर चले और कि भुजा उखाड़ता चले अपनी भुजा टेकता चले सुते को जगवता चले बैठे को उठावता चले हाथों में हथकड़ी गैरे पैरों में पैर कड़ा गैरे हलाल माही दीठ करे मुरदार माही पीठ करे बलवान नबी को याद करे। ॐ नमः ठह ठह स्वाहा। गुरुदेव अशोक कुमार चन्द्रा हरिद्वार उत्तराखण्ड हेल्पलाइन 00919997107192 00917669101100 00918868035065

Friday, July 13, 2018

चंद्रग्रहण 27 जुलाई 2018 सिद्धियाँ

चन्द्र ग्रहणकालीन (27 जुलाई 2018) सिद्धियाँ --- 1-डाकिनी सिद्धि 2-गौ जोगिनी सिद्धि 3-लौंग वशीकरण सिद्धि 4-शौहावीर सिद्धि 5-माता विंध्यवासिनी सिद्धि 6-देवी अम्बिका (चक्रेगमालिनी)सिद्धि 7-देवी कर्ण पिशाचिनी सिद्धि 8-हनुमानजी विचित्र सिद्धि 9-सुग्रीव देव सिद्धि 10-विरहना पीर सिद्धि 11-मिठाई मोहिनी सिद्धि 12-भोजन वशीकरण सिद्धि 13-कढ़ाही बांधना सिद्धि गुरुदेव अशोक कुमार चन्द्रा हरिद्वार उत्तराखण्ड हेल्पलाइन 00917669101100 00919997107192 00918868035065

Tuesday, July 10, 2018

बजरंगबली बल साधना

हनुमान (बाहुबली)चमत्कारी मन्त्र सिद्धि- यह साधना 21 दिन में सिद्ध की जाती है।साधक को धर्मयुद्ध के लिये हनुमानजी से बल माँगना चाहिये। यह सिद्धि किसी भी पूर्णिमा या शुक्ल पक्ष के मंगलवार ,शनिवार या किसी ग्रहण या नवरात्रि या त्यौहार से या श्रावण माह में सिद्ध कर सकते है। साधना के लिये साधक के पास एक कमरा होना चाहिए।केवल साधक ही आ जा सके। हनुमानजी सम्बन्धी सभी नियमो का पालन अनिवार्य है। सिद्धि से पूर्व साधक को हनुमानजी की पूजा मंदिर में जाकर देनी चाहिये और प्रार्थना करे कि निर्विघ्न साधना सम्पन्न हो।यह साधना निःस्वार्थ ,धर्मयुद्ध के लिये कर रहा हूँ। पूजा सामग्री में चन्दन की धूप,अगरबत्ती,2 फल,2 बूंदी के लड्डू, लाल गुलाब की माला,चन्दन का इत्र छोटी शीशी,देशी घी का दिया, लंगोट कपड़े का,चमेली का तेल और लाल सिंदूर का चोला,एक जोड़ी खड़ाऊ, कपड़े लाल रंग के ,पानी का नारियल,एक हरा पान ,2 इलायची( कोई भी) चढ़ाए। मंगलवार शनिवार को बन्दरो को केले,चने ,गुड़ खिलाए।यह कर्म तब तक करे जब तक सिद्धि प्राप्त न हो जाय। सिद्धि के लिये साधक को सबसे पहले अपने कमरे में चन्दन का सेंट छिड़क देना चाहिये फर्श पर और 2 मीटर की ऊंचाई तक चारो दीवारों पर। उसके बाद साधक को सभी सामग्री के साथ कमरे में होना चाहिये।आसन कुशा का रखे उसके ऊपर लाल आसन रखे। 10 मीटर लाल कपड़े के 3 भाग करें। एक भाग डेढ़ मीटर का आसन पर रखे। दूसरा भाग डेढ़ मीटर का बाजोट या चौकी पर रखे। तीसरा भाग 7 मीटर का पहनकर साधना करे। माथे पर लाल चंदन का तिलक लगाएं। माला रूद्राक्ष की होनी चाहिए।माला को जल में डुबोकर लालसिंदूर सभी दानों पर रगड़ें और माला गोमुखी में रख दे। अब पूजा की चौकी पर जल का कलश रखें। थाली में हनुमानजी की मूर्ति स्थापित करे और चन्दन के सेंट या इत्र से स्नान कराए। देशी घी का अखण्ड दिया जलाए। चन्दन की धूपबत्ती, अगर बत्ती जलाए। भोग में गुड़ रखे,मीठा रामरोट भी बनाए। फल ,मिठाई का भोग रखे। फूलों की माला चढ़ाए। थाली में थोड़ा सिंदूर,चावल भी रखे। साधक सबसे पहले पवित्रीकरण अपने शरीर का करे। उसके बाद सामग्री का उसके बाद वास्तु दोष पूजन करे।गुरुमन्त्र एक माला जप करे। संकल्प ले। सुरक्षा साधन करे। हनुमान जी का ध्यान कर मन्त्र सिद्धि शुरू करे। मन्त्र जाप के बाद हनुमान चालीसा का एक पाठ,आरती करें। क्षमा याचना कर वही सो जाय। यह साधना होने पर हनुमानजी साधक को आज्ञा चक्र में प्रकट होकर वरदान देते है। इसमे साधक को बल माँगना चाहिए। यह बल साधक के शरीर मे आने में 2 से 10 साल का समय लग जाता है। पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखे। मन्त्र- ॐ नमः हनुमंताय आवेशाय आवेशय स्वाहा।। गुरु अशोक कुमार चन्द्रा हरिद्वार उत्तराखंड हेल्पलाइन 00917669101100 00919997107192 00918868035065

Monday, July 9, 2018

श्यामकोर मोहिनी साधना

देवी श्याम कौर मोहिनी साधना - यह साधना मोहिनी एकादशी को ,बृहस्पतिवार को,कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रात 10 बजे से शुरू करके 4 बजे तक सुबह के पूर्ण करें। यह सिद्धि सात्विक है किंतु सिद्ध होने के बाद इसके प्रयोग में तामसिक चीजो की जरूरत भी पड़ सकती है जैसे साधक कोई गलत कार्य करता है।इसमें मदिरा,अंडा,मांस,चिता की राख का भी प्रयोग होता है। यह देवी कृष्ण जी की पत्नी सत्यभामा का रूप है। यह सिद्धि 21 दिन की होती है। इस सिद्धि में चौमुखा दिया जलाया जाता है। भोग में लौंग, इलायची,2 मीठे पान,मीठे बतासे,थोड़े से चावल,तुलसी पत्ते,मिश्री,माखन ,आटे का मीठा हलवा ,मिठाई,फल रखे जाते है। सुगंध में साधक को चमेली के फूल,अगरबत्ती ,धूपबत्ती,इत्र रखना चाहिये। यह सिद्धि बंद कमरे में की जाती है। मन्त्र जाप में बैजयंती माला का प्रयोग अनिवार्य है। साधक को पीले वस्त्र पहनकर,पीले आसन पर पूरब या पश्चिम दिशा में मुह करके बैठना चाहिए। माथे पर चंदन सफेद या लाल लगा सकते है। सबसे पहले पवित्रीकरण करके वास्तुदोष पूजन करे। इसके बाद सुरक्षा मन्त्र से अपना शरीर बांध लें,आसन भी बांधे अगर आप आसन नही बांधेंगे तो यह शक्ति आपको घुमा देगी और आप आंखे खोलने पर आपकी दिशा उत्तर या साउथ हो जाएगी जिससे आपकी सिद्धि बेकार हो जाएगी। इसके बाद गुरु मंत्र 11 बार बोले,शिव मन्त्र 11 बार बोले,गणेश मन्त्र 11 बार बोले,विष्णु मन्त्र 11 बार बोले। इसके बाद संकल्प ले । अब देवी श्याम कौर मोहिनी का ध्यान बन्द आंखों में करके मन्त्र जाप करे । सिद्धि के समय बन्द कमरे में आपको आवाजे आएंगी,डरे नही,स्त्री का चित्र आपको दिखाई देगा बंद कमरे में डरे नही,इसी तरह यह घटनायें चलती रहेंगी,इस सिद्धि में साधक को एक समय दूध की खीर का भोजन ही करना होता है। साधना के समय किसी भी स्त्री की आंखों में न देखे। 21 वे दिन बन्द आंखों में देवी प्रकट होकर मानसिक रूप से आपसे वार्ता करेगी,किन्तु डरे नही,उससे कहे 3 वचन दीजिये। जब देवी तैयार हो जाय तो वचन ले दूसरी और आपको मन्त्र जाप भी चालू रखना है अर्थात पूरी माला करनी है। पहले वचन में कहे जब आपको बुलाय आपको आना होगा।। दूसरे वचन में कहे जहां भी आपको भेजा जाएगा जाना होगा तीसरे वचन में कहे सभी तरह के कार्य आपको करने होंगे और जो भी भोग आपका होगा दिया जाएगा। बस इतना वचन देकर देवी चली जायेगी और साधक को सिद्धि प्राप्त हो जाएगी।कितने मन्त्र जाप पर देवी आएंगी यह देवी से वचन लेने के बाद मालूम कर ले। इस शक्ति से 2 कार्य हो ते है एक वशीकरण करने का ,उसको तोड़ने का।। दूसरा उच्चाटन का। यह सभी कार्य देवी आपको सिद्धि होने के बाद करती है। दुरुपयोग न हो इसलिये मन्त्र की अंतिम लाइन लिख दी गयी है, मन्त्र} कामरु देश कामाख्या देवी जहां बसे इस्माइल जोगी इस्माइल जोगी ने बोई फुलवारी फूल तोड़े लोना चमारी एक फूल हँसे एक फूल बसे फूल फूल पर नाहर का बासा देखें सेढओं श्याम कोरे तेरे इलम का तमाशा ।।
गुरु अशोक कुमार चन्द्रा हरिद्वार उत्तराखण्ड हेल्पलाइन 07669101100

Sunday, June 17, 2018

मृत आत्माओं की साधना

मृत आत्मा आह्वान सिद्धि-
यह साधना 3 दिन की होती है।
इसमे साधक को कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को श्मशान जाकर साधना सिद्ध करनी होती है और अमावस्या को पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो जाती है।
इस साधना में साधक एक आत्मा को सिद्ध करता है।
आत्मा किसी भी योनि में हो सकती है जैसे प्रेत ,भूत,चुडेल,डायन आदि।
रात को 12 बजे श्मशान में नहा धोकर जाये।
किसी चिता की तलाश कर जो जली हो।
अगर एक्सीडेंट की जली चिता मिल जाय तो बहुत अच्छा होता है।
साधक माथे पर सिंदूर का तिलक लगाए।
चिता के चारो तरफ 5 परिक्रमा करें, उसके बाद चिता को प्रणाम करके दोनों हाथ जोड़कर बोले-★【"हे आलौकिक शक्ति तुम मेरे वश में हो 】★ इतना कहकर साधक चिता की एक अधजली एक अंगुल की लकड़ी उठा ले और उसे उत्तर दिशा में भगवान शिव का नाम लेकर 2 फ़ीट गहरे गड्ढे में दबा दे।
इस क्रिया के बाद साधक वापस घर आ जाय।
अगले दिन पुनः साधक रात्रि 12 बजे जाए,लकड़ी को खोदकर निकाले ।
पंचोपचार पूजन करके वापस बंद कर दे।
तीसरे दिन अमावस्या को जाकर साधक लकड़ी ले आये।
यह क्रिया भी अर्धरात्रि को करनी चाहिए।
3 दिन की क्रिया में यदि श्मशान  में कोई आवाज,दृश्य आदि की अनुभूति हो तो साधक डरे नही।
लकड़ी  को साधक अपने बंद कमरे  में रखे,उसके साथ प्रेत आत्मा भी आ जाती है जो साधक को दिखाई देती है।
जब सिद्धि का प्रयोग सिद्ध करना हो साधक को तब लकड़ी को आसन के नीचे रखकर उस आत्मा का आह्वान करना चाहिए तब साधक को बंद आँखो में आज्ञा चक्र में एक प्रेत दिखाई देगा जिसके माध्यम से साधक अपने सभी कार्य सिद्ध कर सकता है।मृत आत्मा से साधक बात मानसिक रूप से करता है ।
यह सिद्धि वशीकरण का एक उग्र अस्त्र है।जिस किसी पर प्रयोग करे साधक के वशीभूत  हो जाता है।यह आत्मा साधक की प्रत्येक आज्ञा का पालन करती है।अच्छे बुरे दोनों कार्य करती है।डरपोक ,भीरू ,कायर ,लालची लोग साधना के पात्र नही है।इस साधना में मन्त्र की आवश्यकता नही होतीहै।
तंत्र मात्र से आत्मा सिध्दि प्राप्त होती है।यह साधना जानकारी हेतु दी गयी है।
बिना गुरु यह सिद्धि न करे।
गुरुदेव अशोक कुमार चन्द्रा
हरिद्वार उत्तराखण्ड
हेल्पलाइन-00917669101100
email id-vishnuavtar8@gmail.com

Friday, May 18, 2018

MATA KAMAKHYA


Kamakhya Temple: Story Of A Bleeding Devi Kamakhya temple is a famous pilgrimage situated at Guwahati, Assam. The Kamakhya temple is dedicated to the tantric goddesses. Apart from the deity Kamakhya Devi, compound of the temple houses 10 other avatars of Kali namely Dhumavati, Matangi, Bagola, Tara, Kamala, Bhairavi, Chinnamasta, Bhuvaneshwari and Tripuara Sundari. The Kamakhya Temple also Kamrup-Kamakhya is a Hindu temple dedicated to the mother Goddess Kamakhya. It is one of the oldest of the 51 Shakti Pithas. Situated on the Nilachal Hill in western part of Guwahati city in Assam, India, it is the main temple in a complex of individual temples dedicated to the tenMahavidyas: Kali, Tara, Sodashi, Bhuvaneshwari, Bhairavi, Chhinnamasta,Dhumavati, Bagalamukhi, Matangi and Kamalatmi ka. Among these, Tripurasundari, Matangi and Kamala reside inside the main temple whereas the other seven reside in individual temples. Mythical History: According to the Kalika Purana, Kamakhya Temple denotes the spot where Sati used to retire in secret to satisfy her amour with Shiva, and it was also the place where her yonifell after Shiva danced with the corpse of Sati. The temple of Kamakhya has a very interesting story of its origin. It is one of the 108 Shakti peeths. The story of the Shakti peeths goes like this; once Sati fought with her husband Shiva to attend her father's great yagna. At the grand yagna, Sati's father Daksha insulted her husband. Sati was angered and in her shame, she jumped into the fire and killed herself. When Shiva came to know that his beloved wife had committed suicide, he went insane with rage. He placed Sati's dead body on his shoulders and did the tandav or dance of destruction. To calm him down, Vishnu cut the dead body with his chakra. The 108 places where Sati's body parts fell are called Shakti peeths. Kamakhya temple is special because Sati's womb and vagina fell here. It mentions Kamakhya as one of four primary shakti peethas: the others being the Vimala Temple within the Jagannath Temple complex in Puri, Odisha; Tara Tarini) Sthana Khanda (Breasts), near Brahmapur, Odisha, and Dakhina Kalika in Kalighat, Kolkata, West Bengal originated from the limbs of the Corpse of Mata Sati Origin of the deity Kamakhya The kamakhya originated from the Sanskrit word ‘Kama’ meaning Love making. Kamadeva, the God of Love, on account of a curse had lost his virility. He sought out the womb and the yoni of Maa Shakti and thereby he was freed from the curse. He regained his potency and this is how the deity of ‘Kamakhya’ devi was installed and worshipped here. Some historical studies have also pointed out that the Kamakhya temple is the place where Lord Shiva and devi Sati had their love encounters. Some Interesting Facts The incomplete staircase to the temple: An Asura or demon named Naraka fell in love with Goddess Kamakhya. He wanted to marry her. Goddess Kamakhya who was not interested in Naraka put forward a condition to him that he should build a staircase within one night from the bottom of the Nilachal hill to the temple. If the staircase was built then she would surely marry him. Naraka accepted the condition and tried by all means to get a staircase constructed within one night. Just as it was about to get complete, Maa Kamakhya became tense and decided to play a trick. She strangled a cock and made it to cry so that it appeared that the night had ended. Naraka thought that he could not complete the staircase before morning and left it half-done. Even today, the staircase is incomplete and is known as Mekhelauja path. Most of the pilgrims use this staircase to reach the temple, though there is also a finely paved and pitched road to reach the temple by cars and buses. The Bleeding Goddess: Kamakhya devi is famous as the bleeding goddess. The mythical womb and vagina of Shakti are supposedly installed in the 'Garvagriha' or sanctum of the temple. In the month of Ashaad (June), the goddess bleeds or menstruates. At this time, the Brahmaputra river near Kamakhya turns red. The temple then remains closed for 3 days and holy water is distributed among the devotees of Kamakhya devi. The Great Ambubachi Mela Being the centre for Tantra worship this temple attracts thousands of tantra devotees in an annual festival known as the Ambubachi Mela Another annual celebration is the Manasha Puja. Durga Puja is also celebrated annually at Kamakhya during Navaratri in the autumn. The great Ambubachi mela, also known as the fertility festival, takes place in the Kamakhya temple in the month of June . During this time, the temple remains closed for three days and it is believed that the Goddess menstruates .

शैतान वशीकरण साधना-यह साधना बहुत ही प्राचीन विद्या है, इस साधना के अंतर्गत साधक या साधिका को एक शक्तिशाली शैतानी जिन्नात सिद्ध होता है। इसक...