यह एक प्रबल अस्त्र है, इसके माध्यम से किसी भी ग्राम, किसी भी शहर किसी भी राज्य, किसी भी देश अथवा किसी भी महाद्वीप में निवास करने वाले प्राणी मात्र को हिंसक प्रवृत्ति में परिवर्तित किया जा सकता है जिसके परिणाम स्वरूप वह स्थान आपसी कलह के कारण तबाह हो जाते हैं। इसका प्रयोग शत्रु देशों के विनाश में बहुत लाभकारी होता है, इस अस्त्र की लंबाई मांत्रिक प्रयोगों में बारह हाथ बताई गई है।
इस अस्त्र को प्रयोग करने के लिए मंत्र के ऋषि कालरूद्र है और देवता श्री हनुमान जी हैं।
यह पूर्ण रूप से गायत्री छंद है, शत्रु पक्ष पर जब इसका प्रयोग किया जाता है तो यह अस्त्र शत्रु के शरीर का भेदन करता है और धीरे-धीरे सूक्ष्म रूप में आकार लेने लगता है और लगभग 6 अंगुल की आकृति में शरीर से निकलकर पुनः देवता हनुमान जी के हाथों में पहुंच जाता है और अदृश्य हो जाता है यह पूर्ण प्रक्रिया इस अस्त्र को चलाने की होती है।
अंजनी अस्त्र को सिद्ध करने की साधना लगभग 2 महीने की होती है, साधना काल में मंत्र जाप और हवन दोनों होता है, सिद्ध होने के पश्चात इस अस्त्र का प्रयोग साधक अपनी शक्ति का परीक्षण करने के लिए कर सकता है जिस स्थान पर यह प्रयोग किया जाता है, वह स्थान सुनसान हो जाता है, निर्जन हो जाता है, वीराना हो जाता है, वहां की आबादी लगभग 6 माह में आपसी कलह के कारण नष्ट हो जाती है।
इस अस्त्र का प्रयोग उच्चाटन के लिए भी किया जाता है और आपसी कलह उत्पन्न करने के लिए भी का किया जाता है और शत्रु के समुदाय में आपसी कलह,शत्रुता उत्पन्न करने के लिए भी किया जाता है।
तंत्र शास्त्र में इसको अनेक तरीके से प्रयोग किए जाने की विधियों का वर्णन मिलता है।
यह साधना ग्रहण काल की मध्य रात्रि से की जाती है, इस साधना में दिशा उत्तर होती है, साधना का समय मध्य रात्रि होता है।
इस साधना में हनुमान जी का पूजन होता है और इसके साथ ही माता अंजनी का पूजन भी किया जाता है और इसके साथ ही वायु देव का पूजन भी किया जाता है क्योंकि इस अस्त्र का प्रभाव वायु देव के द्वारा ही निर्धारित किए गए स्थान अथवा लक्ष्य के अंदर वायु मार्ग से अस्त्र की ऊर्जा को प्रवाहित हनुमान जी की शक्ति के द्वारा किया जाता है और जब तक यह अस्त्र अपना लक्ष्य पूर्ण नहीं कर लेता है तब तक वायु के माध्यम से यह ऊर्जा उस स्थान पर विचरण करती है।
इस साधना में पंचोपचार पूजन किया जाता है, शरीर शुद्धीकरण सामग्री शुद्धिकरण, वास्तु दोष पूजन, गुरु पूजन साधना संकल्प लेकर ही साधना का श्रीगणेश किया जाता है और साधना के अंतिम दिन तक साधक को ब्रह्मचर्य से रहना होता है और पूर्ण साधना सिद्ध होने के पश्चात साधक अस्त्र प्रयोग करने योग्य हो जाता है, साधना में प्रतिदिन फल- फूलों की माला मिठाई सुगंधित धूपबत्ती इत्र का उपयोग किया जाता है।
,मंत्र =ॐ ह्रीम क्लीं ऐं सोउम् ग्लौम शोष्य यम ग्रास स्फुर प्रस्फुर सर्वनाश्य स्वाहा स्वाहा।
यह साधना 6 माह में पूर्ण सिद्ध होती है,साधना को एकांत में सिद्ध किया जाता है।।यहां सिर्फ आंजनेयास्त्र की जानकारी दी गई है कि यह अस्त्र का प्रयोग कैसे किया जाता है।।
तांत्रिक अशोक कुमार चंद्रा
हरिद्वार उत्तराखंड भारत
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Monday, January 2, 2023
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