काली कपालिनी साधना
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यह साधना 21 दिन की होती है।
कपालिनी साधक को कभी भी आकर वचन दे सकती है।
साधक को हमेशा सावधान रहना चाहिये मन्त्र जाप के समय। जैसे ही कपालिनी की आवाज साधक को सुनाई दे ,तुरंत साधक उससे वचन ले ले।
पूरे साधना काल मे कपालिनी साधक के आस पास घूमती है अदृश्य रूप में और उसके सहायक कपाल और कपाली भी।।
काली कपालिनी का रूप बहुत महा उग्र होता है।
इस साधना को केवल पत्थर दिल साधक ही सम्पन्न कर सकते है।शेर दिल साधक भी श्मसान छोड़कर भाग सकता है।
कपालिनी वचन के अनुसार सभी कार्य करती है।वर्तमान में यह साधना सिद्ध है और अन्य साधको को भी सिद्ध करायी जाएगी।
वर्तमान में यह साधना हमारे एक शिष्य श्मसान में सम्पन्न कर रहे थे तब मन्त्र जाप के समय जो फ़ोटो उनके हमने खींचे ,उसमे काली कपालिनी भी कैमरे में कैद हो गयी ।इस फोटो की सबसे बड़ी बात यह है कि यह कपालिनी सूर्य प्रकाश में फ़ोटो में गायब सी रहती है और रात्रि में फ़ोटो में दिखाई देती है। डरपोक साधक इस फोटो को न देखे।
यह साधना श्मशान में रात को 12 बजे मंगलवार से शुरू की जाती है।
इस साधना में साधक अपने सामने लाल वस्त्र पर तलवार या छोटा छुरा रख सकता है।
तेल का चिराग जलाये।
एक मिट्टी के प्याले में मदिरा और दूसरे में माँस रखे।मोगरा,गुलाब,चमेली की धूप जलाये।तलवार का पूजन करे ,अपने माथे और तलवार पर सिंदूर का तिलक लगाएं।तलवार पर लाल कनेर के फूल चढाए।
2 बूंदी के लड्डू,थोड़ा माँस ,थोड़ी मदिरा भी चढ़ाए।
21माला 21 दिन करे।
लालवस्त्र साधक पहने।
अपना चारो तरफ से त्रिशूल से सुरक्षा रेखा खींच ले।
मन्त्र जाप शुरू करे।
गुरु साधक को साधना में बैठाकर 25 मीटर की दूरी पर बैठे।
मन्त्र जाप करते हुए साधक के सामने पहले दिन 2 प्रेत आत्माए आती है और साधक पर हमला करती है।पूरे जपकाल में यही रहता है।
दूसरे दिन साधक के सामने श्मसान की स्त्री आत्माए आती है और साधक को डराती है ,धमकाती है।
तीसरे दिन साधक के सामने साँप आता है और सीधा सामग्री में से होकर साधक की टांगो में घुस जाता है,यह एक भ्रम होता है बन्द आँखो में परीक्षा का किन्तु साधक डरे नही।
4 वे दिन प्रेत ,अनेक आत्माए आती है और साधक को परेशान करती है।
इसी बीच साधक को अपने सामने की जमीन हिलती डुलती नजर आती है अर्थात कोई जमीन को ऊपर उठा रहा हो ।
5 वे दिन साधक के सामने जमीन उखाड़नी शुरू कर देती है कपालिनी। क्योंकि यह श्मसान भूमि को फाड़कर बाहर निकलती है।
6 वे दिन साधक को ऐसा लगता है जैसे साधक का माँस कोई कुत्ता आकर खा गया हो किन्तु डरे नही यह भ्रम होता है।
7 वे दिन सभी प्रेतों का हंगामा श्मसान में होता है और इस दिन कपालिनी साधक को श्मसान भूमि को उखाड़कर जमीन से बाहर गर्दन निकाल कर देखती है ।
8 वे दिन ,9वे,10 वे,11 वे ,12वे,13वे,14वे,15वे,16वे,17वे,18वे,19वे,20वे दिन श्मसान में सभी तरह के उपद्रव होते है।कपालिनी साधक के चारो तरफ बहुत तीव्र हवा के झोंके की तरह घूमती है और अपना भोग गृहण करती है।अंतिम दिन कपालिनी काली जाग जाती है और श्मसान की भूमि उखड़नी शुरू ही जाती है,जब यह सामने आती है उससे पहले भयंकर रूप में दुर्गा देवी,काली देवी का अनेक भुजाओं के साथ दर्शन देती है ,साधक को भयभीत करती है,यदि साधक इनसे नही डरा तो अंत मे एक हाथ मे त्रिशूल डमरू लिये हुई,नाक चपटी 2 दांत निकले हुय बाहर को,मुहँ से रक्त बहता हुआ,ऐसे साधक को दर्शन देकर वचन करती है,और सिद्ध होती है।जब यह साधक के कार्य करती है तो एक फुटबॉल की तरह खोपड़ी रूप में करती है।यह साधक के सभी कार्य करती है ।
साधको को एक बात और यहाँ बता देता हूँ यह काली कपालिनी देवी की सिद्धि है न कि किसी कपाल या कपाली की।।
फ़ोटो में साधक काली कपालिनी का चेहरा देख सकते है।
यह ब्रह्मांड के किसी भी जगह की खबर साधक को बता देती है।
गुरुदेव अशोक कुमार चन्द्रा हरिद्वार उत्तराखण्ड भारत
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