आत्मा आवाहन देह विद्या- इस विद्या में साधक मन्त्र शक्ति के माध्यम से आत्माओ के शिकार स्त्री या पुरुषको अपने सामने बैठाकर प्रेत आत्मा या अन्य आत्माओ को उसके शरीर पर बुलाते है और वार्ता करते है ।
इस अवस्था मे जिस शरीर मे यह आत्मा आती है उसकी आत्मा सुप्त अवस्था में चली जाती है और शरीर मे प्रेत आत्मा जाग्रत अवस्था मे आ जाती है।फिर योग्य साधक उस आत्मा से सब कुछ मालूम करके उस आत्मा को पुनर्जन्म के लिये पृथ्वीलोक से विष्णुलोक भेज सकता है अथवा मन्त्र शक्ति से उस आत्मा को किसी बोतल में कैद कर सकता है अथवा उस आत्मा की कोई इच्छा अधूरी है और जायज है तो उसे पूरी करा सकता है अथवा ऐसी आत्मा जिसकी हत्या हुई हो और वह बदला लेना चाहती हो अपने दुश्मनों से तो उस को खुला छोड़ देते है जिससे वह अपने दुश्मनों से बदला ले सके और फिर उस आत्मा को पुनर्जन्म के लिये देव शक्ति का प्रयोग कर विष्णुलोक भेज सकते है।
इस वीडियो में भी एक ऐसी आत्मा को बुलाया गया है और जो अपने शत्रुओं से बदला लेगी और उसका बदला पूर्ण होने पर उसको मुक्ति दे दी जाएगी।
इसके अतिरिक्त यह भी नोसिखिय साधको को पता चल जाएगा कि शरीर मे आत्मा को बुलाकर कैसे बात की जाती है।
यह साधना कुछ मन्त्र जप से सिद्ध की जाती है।यदि साधक किसी खतरनाक आत्मा को शरीर पर बुलाता है तो उसे हानि भी हो सकती है कभी कभी आत्मा शरीर मे आकर हमला भी कर देती है।।इसका दूसरा माध्यम आज्ञा चक्र है जिसमे साधक मानसिक रूप से आज्ञाचक्र के माध्यम से आत्मा से बात कर सकता है।
इसमे एक लड़की की आत्मा अपने माता पिता से बात कर रही है,अपनी मृत्यु का कारण उन्हें बताया।।
इस विद्या में साधक मन्त्र पूजा का विधान कर साध्य के सिर पर कुछ चावल डालता है जिससे उसके अंदर प्रेतात्मा प्रकट हो जाती है ...गुरुदेव अशोक कुमार चन्द्रा
हरिद्वार उत्तराखण्ड भारत
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Tuesday, November 20, 2018
Wednesday, October 24, 2018
श्रीगणेश दिव्य साधना
Tuesday, September 18, 2018
नवरात्रि सिद्धियाँ अक्टूबर 2018
नवरात्रि कालीन सिद्धियाँ-
माता विंध्यवासिनी साधना-
दिव्य दृष्टि ,भूत, भविष्य,वर्तमान(त्रिकालदर्शी),षट कर्म।।।
माता अम्बिका देवी साधना-दिव्यदृष्टि,त्रिकालदर्शी
माता तारा देवी साधना-
दिव्यदृष्टि,
वरदान,अस्त्र प्राप्ति,षट्कर्म।।
माता उग्रतारा साधना-
अस्त्र प्राप्ति,वरदान,दिव्यदृष्टि
माता महाकाली साधना-
वरदान,दिव्यदृष्टि,त्रिकालदर्शी, अस्त्र प्राप्ति,षट्कर्म, कुण्डलिनी जागरण।तांत्रिक बांधा निवारण।।
माता घण्टाकर्णी यक्षिणी साधना-
स्वप्नसिद्धि,षट्कर्म, तांत्रिक उपचार।आत्मा विहार।।
माता शिवकृत्या साधना-
त्रि कर्म,तांत्रिक बांधा निवारण।।
हमजाद साधना-
मिट्टी का हमजाद,यंत्र स्थापना,त्रिकालदर्शी।।
कर्ण पिशाचिनी साधना-
त्रिकालदर्शी।।
माता श्रुतदेवी साधना-
आर्थिक लाभ,रोगमुक्ति,शत्रुदमन।।
माता रक्तादेवी साधना-
षट्कर्म।।
वीर सिद्धि-
षट्कर्म।।
गुरुदेव अशोक कुमार चन्द्रा
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Tuesday, September 11, 2018
नवरात्रि साधना माता श्रुतदेवी सिद्धि
नवरात्रि सिद्धि माता श्रुत देवी साधना- यह साधना नवरात्रों में संपन्न की जाती है इस साधना के द्वारा साधक के यहां धन का बाहुल्य हो जाता है ।
इसके बाद साधक के सभी कार्य पूर्ण हो जाते हैं ।साधक के धन आगमन का मार्ग खुलता है ,स्वास्थ्य परिवार का अच्छा और बाहरी शत्रुओं से निजात मिल जाती है ।
यह साधना नवरात्रि के प्रथम रात्रि को 10:00 बजे के बाद शुरू की जाती है और अंतिम नवरात्रि की रात्रि तक यह साधना की जाती है।
मंत्र जाप पूर्ण होने के बाद नवे नवरात्रि में साधना का दशांश हवन किया जाता है अर्थात नवरात्रि में मंत्र जाप के बाद उसी समय दशांश हवन किया जाता है साधक को माता सपने के माध्यम से या आज्ञा चक्र के माध्यम से दर्शन देती हैं और आशीर्वाद प्रदान करती हैं
यह साधना बंद कमरे में की जाती है ।कमरे में नया रंग होना चाहिए यह रंग लाल पीला या गुलाबी हो सकता है या सफेद रंग भी इसमें कर सकते हैं ।कमरे में फर्श होना चाहिए अथवा टाइल्स हो सकती हैं और कमरे में सब जगह परफ्यूम चंदन का ,गुलाब का ,चमेली का, मोगरा का, का छिड़काव करना चाहिए
इस साधना के लिए साधक को बंद कमरे में रात्रि 10:00 बजे प्रवेश करना चाहिए और माता के नौ व्रत धारण करने चाहिए शाम को माता का पूजन करना चाहिए उसके बाद सिद्धि विधान शुरू करना चाहिए।
इस साधना में साधक को नहा धोकर सर्वप्रथम सफेद वस्त्र या लाल वस्त्र धारण करना चाहिए उसके बाद साधक को माथे पर लाल चंदन का तिलक लगाना चाहिए सफेद आसन या लाल आसन पर बैठना चाहिए उसके बाद साधक को रुद्राक्ष की माला जो गोमुखी में रखी होती है मंत्र जाप करना चाहिए माला को पवित्रीकरण करने के लिए साधक को माला को सर्वप्रथम गंगा जल में स्नान कराना चाहिए उसके बाद लाल सिंदूर से माला के सभी धानों पर लगा देना चाहिए ।
उसके बाद माला को भगवान शिव का ध्यान करते हुए गोमुखी में रख दे इस प्रकार से माला का पूर्ण शुद्धिकरण हो जाता है।
साधक को 6 मीटर कपड़े की धोती धारण करनी चाहिए और 2 मीटर कपड़े को चौकी पर बिछाना चाहिए और 2 मीटर का कपड़ा आसन के ऊपर बिछाना चाहिए ।साधक को बाजोट के ऊपर कपड़ा बिछाना चाहिए। कपड़े के ऊपर कांसे की थाली रखनी चाहिए और उसके बराबर में तांबे के कलश में जल भरकर रखना चाहिए और थाली में गुलाब के फूलों की पंखुड़ियां बिखेरनी चाहिए और उन पंक्तियों में माता दुर्गा अथवा माता सरस्वती का फोटो स्थापित करना चाहिए ।
फोटो पर गुलाब के फूलों की माला (लाल गुलाब के फूलों की माला )चढ़ानी चाहिए ।
उसके अतिरिक्त माता के फोटो के आगे देसी घी का दिया जलाना चाहिए ।
माता को भोग में जो नैवेद्य चढ़ाया जाता है उसमें दो फल , दो मावे की मिठाइयां रखनी चाहिए माता को सुगंधित अगरबत्ती धूप बत्ती अर्पण करनी चाहिए ।
अपने वस्त्रों पर और पूजा के बाजोट के वस्त्रों पर चंदन का सुगंधित सेंड छिड़कना चाहिए इसमें आप अन्य सेंट या इत्र या परफ्यूम जैसे मोगरा ,चमेली, गुलाब या चंदन भी ले सकते हैं अगर सभी तरह के सेंट परफ्यूम अथवा इत्र आपके पास है तो साधना में साधक पूर्ण रुप से सफल होता है।
सभी सामग्री लगाने के बाद साधक को उत्तर दिशा की ओर मुख करके सर्वप्रथम अपने शरीर का पवित्रीकरण करना चाहिए। उसके बाद सामग्री का पवित्रीकरण करना चाहिए ।उसके बाद साधक को वास्तु दोष पूजन करना चाहिए ।वास्तु दोष पूजन के बाद साधक को गुरु मंत्र एक माला जाप करना चाहिए उसके बाद साधक को जिस देवी या देवता की सिद्धि कर रहा है उनके मंत्रों का संकल्प लेना चाहिए कि कितने दिनों की सिद्धि करनी है और कितने मंत्र जाप संपूर्ण करने हैं संकल्प में साधक को अपने माता पिता का नाम अपना नाम अपना स्थान जहां पर साधना कर रहा है ,बोलना चाहिए और कौन से दिन से साधना कर रहा है उस दिन का नाम भी बोलना चाहिए।
साधना का उद्देश्य क्या है?
सिद्धि करके साधक क्या करना चाहेगा ?
उसको भी संकल्प में बोलना चाहिए।
उसके बाद अपने इष्ट देवी या देवता का ध्यान करके साधक को सिद्धि मंत्र का जाप शुरू कर देना चाहिए ।
सिद्धि मंत्र का जाप करते समय साधक का ध्यान तीन अवस्थाओं में होना चाहिए जब साधक बंद आंखें करके मंत्र जाप शुरू करता है तो प्रथम ध्यान साधक का मंत्र के उच्चारण और मंत्र की संख्या पर होना चाहिए
दूसरा ध्यान साधक का बंद आंखों में आज्ञा चक्र के बीच रखना होता है जिस पर ज्यादा जोर नहीं देना केवल अंधकार में ही ध्यान से देखना होता है लेकिन जोर ज्यादा नहीं देना अगर दर्द होने लगे आंखों के बीच तो उसका मतलब है की साधक ज्यादा जोर लगाकर मानसिक रूप से आज्ञा चक्र पर प्रभाव डाल रहा है तो वह कार्य गलत हो जाता है और सिद्धि नहीं मिलती ।
साधक को चाहिए कि साधक आज्ञा चक्र के मध्य थोड़ा सा अपना बंद आंखों से अंधकार में ध्यान लगाए किंतु इतना अधिक ध्यान भी ना लगाएं की आज्ञा चक्र अर्थात माथे में दर्द होने लगे।
जैसे हम सामान्य दृष्टि से किसी को देखते हैं इसी तरह से उस अंधकार में ध्यान लगाना होता है। उसके बाद जो साधक का तीसरा ध्यान होता है मन का जिसमे साधक आज्ञा चक्र के अंधकार में जिस देवी या देवता का साधना कर रहा है,उस आज्ञा चक्र मे उनके प्रतिबिंब की कल्पना करनी चाहिए इसके माध्यम से साधक का ध्यान अन्य कहीं पर नहीं होना चाहिए और साधक साधना में पूर्ण सफलता प्राप्त करता है। साधक जब मंत्र जाप करता है उस समय अनेक प्रकार के अनुभव साधक को होते हैं,
मंत्र जॉब के समय जो साधक को अनुभव होते हैं उन अनुभवों में साधक को ऐसा महसूस होता है जैसे कि उसके कमरे में कोई शक्ति का आवागमन हो रहा है या कोई स्त्री साधक के आसपास घूम रही है, स्त्री रूप अर्थात माता का होता है तो उसका साधक को अनुभव होता है ।
यदि साधक के पास दिव्य दृष्टि अर्थात प्रथम साधक के पास पहले से सिद्धियां होती हैं तो साधक प्रथम दिन से ही माता के दर्शन आज्ञा चक्र से कर सकता है और उनको मानसिक रूप से नमस्कार कर सकता है यदि साधक नया है और प्रथम बार साधना कर रहा है और आज्ञा चक्र विकसित नहीं है तब साधक को आभास होगा और साधक को जब आभास होगा तो उस अवस्था में साधक के कमरे में किसी के चलने फिरने की आहट महसूस होगी ऐसा प्रतीत होगा जैसे कोई उसके पास आकर बैठ गया है या कोई आस पास आकर खड़े होकर घूम रहा है इसके अतिरिक्त साधक को अपने कमरे में सुगंध बढ़ती हुई महसूस होगी जैसे की सुगंध महसूस होती है बढ़ जाती है अचानक इसके अतिरिक्त एक चीज विशेष होती है इस साधना में माता श्रुतदेवी साधना में यह विशेष होता है कि साधक को ऐसा भी प्रतीत होता है जैसे कोई छिपकली कमरे की दीवारों पर या या आसपास घूम रही हो साधक जब रात को सो जाता है ,साधना स्थल पर तो स्वप्न में अनेक प्रकार के दृश्य दिखते हैं ,साधक को डराया भी जा सकता है जिससे साधक को डरना नहीं होता और डर के कारण बहुत से साधक साधना नहीं कर पाते और उस कमरे में फिर नहीं सोते यह सभी परीक्षाएं माता के द्वारा साधक की होती हैं यदि साधक भयभीत नहीं हुआ तो माता साधक के सभी कार्य सिद्ध करती है।
मंत्र जहां पूर्ण होने के बाद साधक ,माता को नैवेद्य अर्पण करना चाहिए अर्थात जो थाली में रखा होता है उसको उठाकर माता के चरणों में रख देना होता है यदि मिठाई है तो मिठाई को माता के चरणों में रख दीजिए और यदि फल है तो फल को भी माता के चरणों में अर्पण कर दीजिए और माता से विनती कीजिए कि माता मैं आपकी पूजा साधना कर रहा हूं ,निस्वार्थ कर रहा हूं और यदि साधना में मुझसे कोई त्रुटि हुई हो तो उसके लिए मुझे क्षमा कीजिए जैसे भी मेरे यथासंभव प्रयास से उस तरीके से मैं यह साधना आपकी संपन्न कर रहा हूं उसके
उसके बाद साधक को वही पर सो जाना चाहिए और सोने के बाद साधक को सुबह उठकर सर्वप्रथम माता का दिया जलाना चाहिए और उनका थोड़ा सा ध्यान करने के बाद अपना जो भी नित्य कर्म है वह करना चाहिए और एक से 2 घंटे बाद आकर सुबह को 8:00 या 9:00 बजे के लगभग जो सामग्री माता को नैवेद्य रूप में चढ़ाई गई थी उसको उठाकर गाय को खिला दें अथवा किसी मंदिर में पहुंचा दें माता के, अथवा यदि यह भी साधक नहीं कर सकता तो किसी निर्जन स्थान पर यह सामग्री रख सकता है
साधक को भोजन किस तरह का करना चाहिए ?
इस साधना में साधक को फलाहार करना चाहिए अर्थात साधक को फल मिठाइयों का सेवन करना चाहिए क्योंकि साधक के नवरात्रि में व्रत भी रहेंगे तो इसलिए विशेष यही रहेगा कि जो व्रत का सामग्री होता है उसी का केवल साधक सेवन करें।
साधक की जब 9 दिन की साधना पूर्ण हो जाती है तो इस साधना में अनेक प्रकार के जो अनुभव है साधक को होते रहते हैं और इनसे मिलते जुलते अनुभव मन्त्र जाप के समय होते रहते हैं। यदि साधक डरता नहीं भयभीत नहीं होता है तो साधना को पूर्ण कर लेता है तो उसके बाद साधक को यदि आज्ञा चक्र साधक का विकसित हैं और पहले से साधक के पास दिव्य दृष्टि है तो नौवें दिन नौवें दिन ही माता श्रुतदेवी सफेद वस्त्र धारण किए हुए गले में रुद्राक्ष की माला पहने हुए साधक के सामने प्रकट होती हैं और साधक वर मांगने के लिए कहती हैं अर्थात साधक को जो वचन चाहिए या जो वर चाहिए मांगने के लिए बोलती हैं ,साधक को उस समय तुरंत माता से वचन ले लेना चाहिए तीनों वचनों में
साधक को अपनी आर्थिक स्थिति को ठीक करने बीमारियों से परिवार की रक्षा के लिए और धन धान्य से पूर्ण होने के लिए वचन मांगना चाहिए यह माता जब साधक को वचन देती हैं और आशीर्वाद देती हैं तो एवमस्तु कहती है ।
इसका अर्थ होता है की साधक को पूर्ण रुप से फल की प्राप्ति हो चुकी है।
इसके बाद साधक का कार्य पूर्ण हो जाता है
जिन साधको का आज्ञा चक्र विकसित नही है जो नए साधक है उनको माता सपने में दर्शन देती है।।
मन्त्र-
ॐ नमो भगवती श्रुतदेवी हंसवाहिनी त्रिकालनिमित्त प्रकाशिनि सत भावे सत भाषे असत का प्रहार करें
ॐ नमो श्रुतदेवी स्वाहा।
गुरुदेव अशोक कुमार चंद्रा
हरिद्वार उत्तराखण्ड
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Monday, August 6, 2018
Past-present-future sadhna
Monday, July 30, 2018
पत्रिका सदस्य एकवर्षीय
Thursday, July 19, 2018
विरहना पीर साधना
Friday, July 13, 2018
चंद्रग्रहण 27 जुलाई 2018 सिद्धियाँ
चन्द्र ग्रहणकालीन (27 जुलाई 2018) सिद्धियाँ ---
1-डाकिनी सिद्धि
2-गौ जोगिनी सिद्धि
3-लौंग वशीकरण सिद्धि
4-शौहावीर सिद्धि
5-माता विंध्यवासिनी सिद्धि
6-देवी अम्बिका (चक्रेगमालिनी)सिद्धि
7-देवी कर्ण पिशाचिनी सिद्धि
8-हनुमानजी विचित्र सिद्धि
9-सुग्रीव देव सिद्धि
10-विरहना पीर सिद्धि
11-मिठाई मोहिनी सिद्धि
12-भोजन वशीकरण सिद्धि
13-कढ़ाही बांधना सिद्धि
गुरुदेव अशोक कुमार चन्द्रा
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Tuesday, July 10, 2018
बजरंगबली बल साधना
हनुमान (बाहुबली)चमत्कारी मन्त्र सिद्धि-
यह साधना 21 दिन में सिद्ध की जाती है।साधक को धर्मयुद्ध के लिये हनुमानजी से बल माँगना चाहिये।
यह सिद्धि किसी भी पूर्णिमा या शुक्ल पक्ष के मंगलवार ,शनिवार या किसी ग्रहण या नवरात्रि या त्यौहार से या श्रावण माह में सिद्ध कर सकते है।
साधना के लिये साधक के पास एक कमरा होना चाहिए।केवल साधक ही आ जा सके।
हनुमानजी सम्बन्धी सभी नियमो का पालन अनिवार्य है।
सिद्धि से पूर्व साधक को हनुमानजी की पूजा मंदिर में जाकर देनी चाहिये और प्रार्थना करे कि निर्विघ्न साधना सम्पन्न हो।यह साधना निःस्वार्थ ,धर्मयुद्ध के लिये कर रहा हूँ।
पूजा सामग्री में चन्दन की धूप,अगरबत्ती,2 फल,2 बूंदी के लड्डू, लाल गुलाब की माला,चन्दन का इत्र छोटी शीशी,देशी घी का दिया, लंगोट कपड़े का,चमेली का तेल और लाल सिंदूर का चोला,एक जोड़ी खड़ाऊ, कपड़े लाल रंग के ,पानी का नारियल,एक हरा पान ,2 इलायची( कोई भी) चढ़ाए।
मंगलवार शनिवार को बन्दरो को केले,चने ,गुड़ खिलाए।यह कर्म तब तक करे जब तक सिद्धि प्राप्त न हो जाय।
सिद्धि के लिये साधक को सबसे पहले अपने कमरे में चन्दन का सेंट छिड़क देना चाहिये फर्श पर और 2 मीटर की ऊंचाई तक चारो दीवारों पर।
उसके बाद साधक को सभी सामग्री के साथ कमरे में होना चाहिये।आसन कुशा का रखे उसके ऊपर लाल आसन रखे।
10 मीटर लाल कपड़े के 3 भाग करें।
एक भाग डेढ़ मीटर का आसन पर रखे।
दूसरा भाग डेढ़ मीटर का बाजोट या चौकी पर रखे।
तीसरा भाग 7 मीटर का पहनकर साधना करे।
माथे पर लाल चंदन का तिलक लगाएं।
माला रूद्राक्ष की होनी चाहिए।माला को जल में डुबोकर लालसिंदूर सभी दानों पर रगड़ें और माला गोमुखी में रख दे।
अब पूजा की चौकी पर जल का कलश रखें।
थाली में हनुमानजी की मूर्ति स्थापित करे और चन्दन के सेंट या इत्र से स्नान कराए।
देशी घी का अखण्ड दिया जलाए।
चन्दन की धूपबत्ती, अगर बत्ती जलाए।
भोग में गुड़ रखे,मीठा रामरोट भी बनाए।
फल ,मिठाई का भोग रखे।
फूलों की माला चढ़ाए।
थाली में थोड़ा सिंदूर,चावल भी रखे।
साधक सबसे पहले पवित्रीकरण अपने शरीर का करे।
उसके बाद सामग्री का
उसके बाद वास्तु दोष पूजन करे।गुरुमन्त्र एक माला जप करे।
संकल्प ले। सुरक्षा साधन करे।
हनुमान जी का ध्यान कर मन्त्र सिद्धि शुरू करे।
मन्त्र जाप के बाद हनुमान चालीसा का एक पाठ,आरती करें।
क्षमा याचना कर वही सो जाय।
यह साधना होने पर हनुमानजी साधक को आज्ञा चक्र में प्रकट होकर वरदान देते है।
इसमे साधक को बल माँगना चाहिए।
यह बल साधक के शरीर मे आने में 2 से 10 साल का समय लग जाता है।
पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखे।
मन्त्र-
ॐ नमः हनुमंताय आवेशाय आवेशय स्वाहा।।
गुरु अशोक कुमार चन्द्रा
हरिद्वार उत्तराखंड
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Monday, July 9, 2018
श्यामकोर मोहिनी साधना
देवी श्याम कौर मोहिनी साधना -
यह साधना मोहिनी एकादशी को ,बृहस्पतिवार को,कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रात 10 बजे से शुरू करके 4 बजे तक सुबह के पूर्ण करें।
यह सिद्धि सात्विक है किंतु सिद्ध होने के बाद इसके प्रयोग में तामसिक चीजो की जरूरत भी पड़ सकती है जैसे साधक कोई गलत कार्य करता है।इसमें मदिरा,अंडा,मांस,चिता की राख का भी प्रयोग होता है।
यह देवी कृष्ण जी की पत्नी सत्यभामा का रूप है।
यह सिद्धि 21 दिन की होती है।
इस सिद्धि में चौमुखा दिया जलाया जाता है।
भोग में लौंग, इलायची,2 मीठे पान,मीठे बतासे,थोड़े से चावल,तुलसी पत्ते,मिश्री,माखन ,आटे का मीठा हलवा ,मिठाई,फल रखे जाते है।
सुगंध में साधक को चमेली के फूल,अगरबत्ती ,धूपबत्ती,इत्र रखना चाहिये।
यह सिद्धि बंद कमरे में की जाती है।
मन्त्र जाप में बैजयंती माला का प्रयोग अनिवार्य है।
साधक को पीले वस्त्र पहनकर,पीले आसन पर पूरब या पश्चिम दिशा में मुह करके बैठना चाहिए।
माथे पर चंदन सफेद या लाल लगा सकते है।
सबसे पहले पवित्रीकरण करके वास्तुदोष पूजन करे।
इसके बाद सुरक्षा मन्त्र से अपना शरीर बांध लें,आसन भी बांधे अगर आप आसन नही बांधेंगे तो यह शक्ति आपको घुमा देगी और आप आंखे खोलने पर आपकी दिशा उत्तर या साउथ हो जाएगी जिससे आपकी सिद्धि बेकार हो जाएगी।
इसके बाद गुरु मंत्र 11 बार बोले,शिव मन्त्र 11 बार बोले,गणेश मन्त्र 11 बार बोले,विष्णु मन्त्र 11 बार बोले।
इसके बाद संकल्प ले ।
अब देवी श्याम कौर मोहिनी का ध्यान बन्द आंखों में करके मन्त्र जाप करे ।
सिद्धि के समय बन्द कमरे में आपको आवाजे आएंगी,डरे नही,स्त्री का चित्र आपको दिखाई देगा बंद कमरे में डरे नही,इसी तरह यह घटनायें चलती रहेंगी,इस सिद्धि में साधक को एक समय दूध की खीर का भोजन ही करना होता है।
साधना के समय किसी भी स्त्री की आंखों में न देखे।
21 वे दिन बन्द आंखों में देवी प्रकट होकर मानसिक रूप से आपसे वार्ता करेगी,किन्तु डरे नही,उससे कहे 3 वचन दीजिये।
जब देवी तैयार हो जाय तो वचन ले दूसरी और आपको मन्त्र जाप भी चालू रखना है अर्थात पूरी माला करनी है।
पहले वचन में कहे जब आपको बुलाय आपको आना होगा।।
दूसरे वचन में कहे जहां भी आपको भेजा जाएगा जाना होगा
तीसरे वचन में कहे सभी तरह के कार्य आपको करने होंगे और जो भी भोग आपका होगा दिया जाएगा।
बस इतना वचन देकर देवी चली जायेगी और साधक को सिद्धि प्राप्त हो जाएगी।कितने मन्त्र जाप पर देवी आएंगी यह देवी से वचन लेने के बाद मालूम कर ले।
इस शक्ति से 2 कार्य हो ते है एक वशीकरण करने का ,उसको तोड़ने का।। दूसरा उच्चाटन का।
यह सभी कार्य देवी आपको सिद्धि होने के बाद करती है।
दुरुपयोग न हो इसलिये मन्त्र की अंतिम लाइन लिख दी गयी है,
मन्त्र}
कामरु देश कामाख्या देवी
जहां बसे इस्माइल जोगी
इस्माइल जोगी ने बोई फुलवारी
फूल तोड़े लोना चमारी
एक फूल हँसे एक फूल बसे
फूल फूल पर नाहर का बासा
देखें सेढओं श्याम कोरे तेरे इलम का तमाशा ।।
गुरु अशोक कुमार चन्द्रा
हरिद्वार उत्तराखण्ड
हेल्पलाइन 07669101100
Sunday, June 17, 2018
मृत आत्माओं की साधना
मृत आत्मा आह्वान सिद्धि-
यह साधना 3 दिन की होती है।
इसमे साधक को कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को श्मशान जाकर साधना सिद्ध करनी होती है और अमावस्या को पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो जाती है।
इस साधना में साधक एक आत्मा को सिद्ध करता है।
आत्मा किसी भी योनि में हो सकती है जैसे प्रेत ,भूत,चुडेल,डायन आदि।
रात को 12 बजे श्मशान में नहा धोकर जाये।
किसी चिता की तलाश कर जो जली हो।
अगर एक्सीडेंट की जली चिता मिल जाय तो बहुत अच्छा होता है।
साधक माथे पर सिंदूर का तिलक लगाए।
चिता के चारो तरफ 5 परिक्रमा करें, उसके बाद चिता को प्रणाम करके दोनों हाथ जोड़कर बोले-★【"हे आलौकिक शक्ति तुम मेरे वश में हो 】★ इतना कहकर साधक चिता की एक अधजली एक अंगुल की लकड़ी उठा ले और उसे उत्तर दिशा में भगवान शिव का नाम लेकर 2 फ़ीट गहरे गड्ढे में दबा दे।
इस क्रिया के बाद साधक वापस घर आ जाय।
अगले दिन पुनः साधक रात्रि 12 बजे जाए,लकड़ी को खोदकर निकाले ।
पंचोपचार पूजन करके वापस बंद कर दे।
तीसरे दिन अमावस्या को जाकर साधक लकड़ी ले आये।
यह क्रिया भी अर्धरात्रि को करनी चाहिए।
3 दिन की क्रिया में यदि श्मशान में कोई आवाज,दृश्य आदि की अनुभूति हो तो साधक डरे नही।
लकड़ी को साधक अपने बंद कमरे में रखे,उसके साथ प्रेत आत्मा भी आ जाती है जो साधक को दिखाई देती है।
जब सिद्धि का प्रयोग सिद्ध करना हो साधक को तब लकड़ी को आसन के नीचे रखकर उस आत्मा का आह्वान करना चाहिए तब साधक को बंद आँखो में आज्ञा चक्र में एक प्रेत दिखाई देगा जिसके माध्यम से साधक अपने सभी कार्य सिद्ध कर सकता है।मृत आत्मा से साधक बात मानसिक रूप से करता है ।
यह सिद्धि वशीकरण का एक उग्र अस्त्र है।जिस किसी पर प्रयोग करे साधक के वशीभूत हो जाता है।यह आत्मा साधक की प्रत्येक आज्ञा का पालन करती है।अच्छे बुरे दोनों कार्य करती है।डरपोक ,भीरू ,कायर ,लालची लोग साधना के पात्र नही है।इस साधना में मन्त्र की आवश्यकता नही होतीहै।
तंत्र मात्र से आत्मा सिध्दि प्राप्त होती है।यह साधना जानकारी हेतु दी गयी है।
बिना गुरु यह सिद्धि न करे।
गुरुदेव अशोक कुमार चन्द्रा
हरिद्वार उत्तराखण्ड
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email id-vishnuavtar8@gmail.com
यह साधना 3 दिन की होती है।
इसमे साधक को कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को श्मशान जाकर साधना सिद्ध करनी होती है और अमावस्या को पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो जाती है।
इस साधना में साधक एक आत्मा को सिद्ध करता है।
आत्मा किसी भी योनि में हो सकती है जैसे प्रेत ,भूत,चुडेल,डायन आदि।
रात को 12 बजे श्मशान में नहा धोकर जाये।
किसी चिता की तलाश कर जो जली हो।
अगर एक्सीडेंट की जली चिता मिल जाय तो बहुत अच्छा होता है।
साधक माथे पर सिंदूर का तिलक लगाए।
चिता के चारो तरफ 5 परिक्रमा करें, उसके बाद चिता को प्रणाम करके दोनों हाथ जोड़कर बोले-★【"हे आलौकिक शक्ति तुम मेरे वश में हो 】★ इतना कहकर साधक चिता की एक अधजली एक अंगुल की लकड़ी उठा ले और उसे उत्तर दिशा में भगवान शिव का नाम लेकर 2 फ़ीट गहरे गड्ढे में दबा दे।
इस क्रिया के बाद साधक वापस घर आ जाय।
अगले दिन पुनः साधक रात्रि 12 बजे जाए,लकड़ी को खोदकर निकाले ।
पंचोपचार पूजन करके वापस बंद कर दे।
तीसरे दिन अमावस्या को जाकर साधक लकड़ी ले आये।
यह क्रिया भी अर्धरात्रि को करनी चाहिए।
3 दिन की क्रिया में यदि श्मशान में कोई आवाज,दृश्य आदि की अनुभूति हो तो साधक डरे नही।
लकड़ी को साधक अपने बंद कमरे में रखे,उसके साथ प्रेत आत्मा भी आ जाती है जो साधक को दिखाई देती है।
जब सिद्धि का प्रयोग सिद्ध करना हो साधक को तब लकड़ी को आसन के नीचे रखकर उस आत्मा का आह्वान करना चाहिए तब साधक को बंद आँखो में आज्ञा चक्र में एक प्रेत दिखाई देगा जिसके माध्यम से साधक अपने सभी कार्य सिद्ध कर सकता है।मृत आत्मा से साधक बात मानसिक रूप से करता है ।
यह सिद्धि वशीकरण का एक उग्र अस्त्र है।जिस किसी पर प्रयोग करे साधक के वशीभूत हो जाता है।यह आत्मा साधक की प्रत्येक आज्ञा का पालन करती है।अच्छे बुरे दोनों कार्य करती है।डरपोक ,भीरू ,कायर ,लालची लोग साधना के पात्र नही है।इस साधना में मन्त्र की आवश्यकता नही होतीहै।
तंत्र मात्र से आत्मा सिध्दि प्राप्त होती है।यह साधना जानकारी हेतु दी गयी है।
बिना गुरु यह सिद्धि न करे।
गुरुदेव अशोक कुमार चन्द्रा
हरिद्वार उत्तराखण्ड
हेल्पलाइन-00917669101100
email id-vishnuavtar8@gmail.com
Friday, May 18, 2018
MATA KAMAKHYA
MATA LAXMI
MAHAKAALI MATA
Sunday, May 6, 2018
SADHNA AND SIDDHI FROM INDIAN TANTRA MANTRA VASHIKARAN
Ashok ji is an Indian Tantric, hailing from Haridwar, born in the family of brahman,up India, Ashok Ji is practicing tantra from past 20 years by
the time Ashok reached age of 25, he had acquired great knowledge, expertise and siddhi. He became a master fortune teller Ashok ji has a lot of
knowledge in this field, because they are well known for their intelligence towards their procedures .From many years he is moving forward in
this field. He knows every tantric rituals which can be help to people to save their life. He can solve their problems in a very proficient manner. is
a widely well-known tantra mantra specialist, who will defeat anyone who wants to harm you and help you in fulfilling your desires by using his
knowledge of Black magic tantra mantra and reverse any evil spell used to harm you.
Ashok Ji's motive in life is to fulfill the unmet desires and wishes of disturbed wandering souls and help these souls to take rebirth and to bring
happiness and affection in people life and keep away all kind of conflicts, hassles and worries, this is the only reason dedicated whole life for
peoples happiness.
Ashok Ji has done 151 siddhis which has been vanished in this kalyug. In this Kalyug it is very difficult for any human to learn these many
siddhis but people who have great powers can attain these many siddhis.
Ashok ji goes on learning new sadhana there is no end to these and reveals it to public once siddhi is attained encourages others to learn sadhana
to make their own life a stress free life as well as for others.
Ashok is well known public personality in world of tantra to solve the love problems and many other dreadful tactics against you by his popular
successful techniques and considers the client and their problem as our first priority.
He works with true dedication any ways to make the entire situation your side.
He wants that popularity of Indian tantra and amazing successful services of it should spread all over the world and in this order to make this
dream true he is providing his online services with his ancient treaties that make this world beautiful for you. Ancient tantra vidhya is powerful as
this is basic concept of all the problem solving Indian mythologies and scriptures. He is the right path for you to change your career, profession
and any other family dispute towards the positive side and removes all the disappointment from your life forever.
Online services:
Tantric vidya is all about tantra and mantra, a person can do anything just with the help of those tantra and mantra. Online tantric Ashok ji expert
in the tantra vidya, although it is really very tough to become the expert in the tantra vidya but he has done practice and has very good knowledge
of the vashikaran and black magic which are two most powerful magic. Ashok Ji provides Tantric vidya online to his students as well as
foreigners.
Black magic has been used for centuries by people in our country to achieve their objectives, cause harm or loss to any person. It is based
on magic spells, tantra mantra, and obscure rituals which are effective from anywhere across the world.
Black magic Ashok Ji is specialist of mohini, uchattan,vashikaran, vidhveshan
Among his other activities, Ashok ji is known for delivering speeches on you tube tubes blog, face book about sadhana / siddhi
People do wander here and there for the solution of their problems but now they do not have to worry anymore just go online tantric baba ji blog.
People those who are frustrated in their interpersonal relationships, love life, career, business and other problems can take the help of him to sort
out their all problems. If they are unable to get any solution then they can also send their query to the baba ji so that he can telephonically give
right solution for your problems. He always listens to the problem of his clients very carefully and always used to give the solution according to
their problems.
A lot of people are using it even in this modern era to achieve what they desire in life. Black magic spells can cause irreparable harm, even death,
if the spell is not removed at the right time.
His services are known not only in India, but also in many foreign countries. He has a solution for every human problem. Every day, many people
bring smiles to their faces because of them. Therefore, whenever you faced difficulties or have difficulties, consult with him to solve the problem.
His guidance and help are very useful. Make your life full of happiness.
Many worldwide clients are thankful to him to bring sudden positive changes in life of them. This well-known popularity of him is a hope for
unhappy people who have lost hope. He is the person with scope to bring some hope in people's life.
He has great command on an tantric vidya, this is the reason that numerous devotees around the world have become, taken avail of effective and
great services and satisfied from his service as well.
LAST
There are no one people who are deprived of the negative energies and crisis, means all people have some issues, might be all have different to
each other, it does happen with all, Although, it different thing that some of the people can easily overcome of issues, and rest of aren’t.
But you know what, once a while, issues occur in people life cause of malefic planets or negative energies, this is the reason, and people can’t
overcome of issues, along with that people can’t go anywhere to consult with a specialist. If you are in such a complicated situation, your life isn’t
going on as you want just because of having hidden energies then now you don’t need to have worries anymore because here is our specialist, he
provide Online problem solution. So not matter in which corner of the world you are located, he will make you help online. So let’s make a single
phone call to him and get a solution of all problems, which is going on with you with fruitful results.
The human being life has affected a cause of much reason, cause of that their life goes through some rock road, from that issues, evil spirit and
malefic planets are also responsible for that. To get overcome of such kind of issues Tantrik Baba makes help of living beings to get overcome
of issues.
As a human being all people has many dreams about their future life, for this, they want to accomplish all things and want to live their life as they
visualize. Only rare of the couple can enjoy their lovely and wonderful life as they actually want it to be and rest of aren’t. It doesn’t mean that
those people who are not able to get success, who don’t want, of course all wants, but you know this difference occur because of having different-
different malefic position, negative energies and deficiency of destiny.
What is Sadhana Know it:
Sadhana is spiritual movement consciously systematized. Sadhana is the purpose for which we have come to this place.
Sadhana is a lifelong process. Every day, every hour, every minute, is an onward march. Obstacles are innumerable in this great voyage. But, so
long as you hold God as thy guide, there is nothing to worry about. You are sure to reach the other shore.
You must have interest and liking in your Sadhana. You must understand well the technique and benefits of Sadhana. You must select a Sadhana
that is suitable for you. You must have the ability and capacity to do Sadhana. Then alone you will have joy in do ing the Sadhana and full success
in it.
You are backed up at all times by a mighty power that works everywhere in the cosmos. Therefore you have nothing to fear. Take care of the
details in Sadhana. The major factor will take care of itself.
Some aspirants leave Sadhana after some time. They expect great fruits quickly. They expect many Siddhis within a short time. When they do not
get some, they give up the Sadhana. There are several ranges of consciousness between the ordinary human consciousness and the
supra-consciousness of Brahman. Different veils have to be torn down on the way; many lower centres have to be opened up; many hurdles have
to be crossed before the final goal is reached.
You have to plod on and scale many hills. You cannot climb the Everest in one jump. There is no jumping on the spiritual path.
Self-realization is not like a six-year post-graduate course. It is the result of intense protracted Sadhana.
There is no short-cut in the spiritual path. There is no royal road to the kingdom of immortal bliss. There is no half-measure in the divine path.
Strict, hard discipline is wanted. Then alone you can conquer Maya. Only then can you control the mind.
Saints and Yogins will never think that they have controlled the mind. Only the deluded Sadhaka will imagine he has controlled the mind and get
a terrible downfall. It is the very nature of life, mind, and Prakriti to be constantly in motion. When there is the idea in the mind that the highest
goal is yet to be achieved, you will always move towards it. If you imagine that you have got to the top, you will anyhow have to move, and that
movement will be downward. You will have a downfall. Aspire for higher realization till the breath ceases in the nostril.
Spiritual progress is slow, as the spiritual Sadhana is difficult and laborious. It is like the spiral. In the beginning, great striving is needed.
Gradually, the circle becomes smaller and smaller. So also, the striving becomes less and less. The aspirant gains spiritual strength slowly. He
marches faster and faster. Finally, he does not go by furlongs after furlongs. He proceeds by mile after mile. He gallops and gallops. Therefore, be
patient; be persevering; be steady.
Be circumspective. Ignore all these trivial things. Be steady with your practice. Never stop the practice till the final beatitude is reached. Never
cease Sadhana till you can constantly dwell in full Brahmic consciousness.
Do not let failures discourage you, but go on doing your best. Do not brood over your past mistakes and failures, as this will only fill your mind
with grief, regret and depression. Do not repeat them in future. Be cautious. Just think of the causes which led to your failures and try to remove
them in future. Strengthen yourself with new vigour and virtues. Develop slowly your will-power.
Every temptation that is resisted, every evil thought that is curbed, every desire that is subdued, every bitter word that is withheld, every noble
aspiration that is encouraged, every sublime thought that is cultivated, adds to the development of will-force, good character, and attainment of
eternal bliss and immortality.
Every bit of Sadhana done is surely recorded without fail in your hidden consciousness. No Sadhana ever goes in vain. Every bit of it is credited
immediately towards your evolution. This is the law. Think not negative thoughts, but calmly go on with the Sadhana. Be regular at it. Without
missing a single day, proceed onward with your spiritual practices. Little by little, the power accumulates and it will grow. Ultimately, the
cumulative force of all the continuous earnest Sadhana done perseveringly and patiently over a long period of life has its inevitable grand
consummation at the supreme moment when it bears fruit in the form of blissful Realization.
Let the Sadhana be regular, continuous, unbroken, and earnest. Not only regularity, but also continuity in Sadhana and meditation is necessary if
you want to attain Self-realization quickly. A spiritual stream once set going does not dry up, unless the channel-bed is locked, unless there is
stagnation. Be vigilant eternally. Meditate regularly. Annihilate the under-current of Vasanas
Sometimes the aspirant gets stuck up. He cannot proceed further in his path. Sometimes he is side-tracked through Siddhis. He loses his way and
walks in some other direction. He misses the goal. Sometimes he is assailed by temptations and various oppositions. Sometimes he gets false
contentment. He thinks he has reached his goal and stops all Sadhana. Sometimes he is careless, lazy, indolent. He cannot do any Sadhana.
Therefore, be eternally vigilant, like the captain of a ship, like the surgeon in the operation theatre.
Act now. Live now. Know now. Realize now. Be happy now.
Every death is a reminder. Every bell that rings says, "The end is near". Every day robs off from you one part of your precious life. Therefore, you
should be very earnest in plunging yourself in constant Sadhana.
Never fall a victim to fruitless regret. Today is the best day. Today is the day of your new birth. Start Sadhana now. With folded palms, bid
good-bye to past mistakes and faults. You have learnt your lessons. March forward now with new hope, determination, and vigilance.
Waver not. Fear not. Doubt not. Do something substantial in the path of Sadhana instead of wasting your time in idle pursuits and lethargy. You
have infinite strength within you. There is a vast reservoir of power within you. Therefore, do not lose heart. Obstacles are stepping stones to
success. They will develop your will. Do not allow yourself to be crushed by them. Defects remind you of perfection. Sin reminds you of virtue.
Chose the positive path.
If you think, "I will take a bath when all the waves of the sea subside", this is not possible. The waves will never subside and you will never take
a bath. Even so, if you think, "I will start spiritual Sadhana or meditation when all my cares, worries and anxieties cease, when all my sons are
fixed up in life, when I have ample leisure after retirement", this is not possible. You will not be able to sit even for half an hour when you
become old. You will have no strength to do any rigorous Tapas when you are in advanced senility.
You must start vigorous spiritual practices when you are young, whatever your conditions, circumstances and environments may be. Then only
you will reap a rich spiritual harvest when you become old. You will enjoy the everlasting peace of the Eternal.
The science of siddhis, or psychic powers, has been known throughout the world for thousands of years, as long as tantra has existed. One can
derive these powers from the practice of particular techniques, or they can be gained through direct contact with the guru. When the guru blesses
the disciple by placing his hands on the disciple's head or back, then the transformation begins to take place.
When this transformation is going on within you, your vision expands into a new dimension. For example, you may be able to see someone
coming into the room who is not really physically present. This is not a ghost or some spirit entity; nor are you hallucinating. Rather, it is a
definite change in the physiology of the physical body and in the conscious body which enables you to have this experience.
It is the same as when you have a thought of your wife, a child who is abroad or sick, or a son who is yet to marry. Usually you can only imagine
them, but if your thoughts were to take gross, material form, and you could actually see your son sitting right beside you, how would you react?
Would you be able to bear this experience?
Because you cannot tolerate or understand it, you are unable to bear this type of experience. You have so much fear that you can easily make
yourself crazy. Fear brings imbalance to the mind and emotions, and when there is too much it may also bring some sickness to the body. But
these reactions are not substantial; they are just superficial experiences, like the thoughts which go on in your mind while you are sitting here
listening to me.
Many people come to us when they lose a member of the family that they love the most, whether it be father, mother, wife, daughter or son. They
ask us, 'Guruji, please let me see him just one more time.' We tell them, 'He is dead and gone; you must try not to think about him.' But they
continue to plead, 'Please, just once!' Then we ask them, 'If I let you see, will you be able to handle the experience?' They say, 'Yes'.
'Okay, then first do one thing. Tomorrow at midnight, go up to the burial ground and bring back a branch of some plant, a piece of mud or a stone.
You just do this much and then I will show you this experience.' But the very thought of doing this fills them with terrible fright.
You see, the mind and its promptings, urges and impulses, whether instinctive or man-made, are so strong that you have to learn how to bear
them. This is called siddhi. Developing your mental power, your emotional power, or even making your body healthy, these are all siddhis.
What you have heard about siddhis is not exact, and not the right concept. You have been given either too high a concept about siddhis or too low;
neither are right. 'Siddha' means to fulfil, to perfect, as when it is said in day to day life, 'You have to make your action siddha.' When you perfect
and complete something, that is siddhi.
Because this little technique, inhaling deeply and then producing the sound of Om with the breath, creates vibrations inside the body which
change the mental patterns of the brain. The brain has two hemispheres, and they are always generating energy which flows in particular
directions. If you breathe deeply and produce the sound of Om in a certain way, then the movement of this energy changes. This affects
everything happening in the body, right from the thoughts up to the secretions of the glands, If some secretions are deficient then they are
increased, and if they are in excess then they are decreased. Everything is balanced.
What happens on the emotional level is that any agitation, fatigue, fear or insecurity is calmed down and the thoughts become clear. Old, long
forgotten memories become fresh again, not the memories of death, violence or unpleasant things, but of those things which you would like to
remember. Of course, you don't wish to be reminded of your work, of somebody who has died, or of times when you have been insulted, hurt or
harmed. No, that is the wrong memory. But the pure memories come, keen and sharp. This is one of the small siddhis, not one of the great,
miraculous siddhis which you always hear about.
Thursday, April 26, 2018
महालक्ष्मी साधना
महालक्ष्मी साधना- यह साधना 3 महीने में सिद्ध होती है।सिद्ध होने पर साधक अकूत धन संपदा का मालिक कुछ ही सालो मे बन जाता है।उसके चारों तरफ धन आगम के नए नए स्त्रोत बनते जाते है।साधक ऋण से मुक्त हो जाता है।सिद्धि के समय माता लक्ष्मी साधक को बंद आँखो में आज्ञा चक्र में दर्शन देती हैं।अतः साधक अपनी साधना पूर्ण सिद्ध जाने।
साधक खाने में पीले रंग के फल,मिठाई,दालें ,चावल का सेवन करे।
भोजन 2 समय सुबह 11 बजे और शाम 5 बजे ग्रहण करे।
पीला आसन,पीले वस्त्र,पूजा का आसन पीला रखे।
माथे पर पीला चन्दन का तिलक या हल्दी का तिलक लगाय।
माला पीले रंग की हल्दी की होनी चाहिये।
साधक अपने सामने स्नान करके पीले आसन पर शांत मन से बैठ जाये । पीला तिलक लगाय।अपने सामने बाजोट या चौकी (लकड़ी) पर सवा मीटर कपड़ा बिछाये।साधक को अपने आसन पर भी सवा मीटर पीला कपड़ा बिछाना चाहिए।7 मीटर की धोती धारण करनी चाहिए और धोती के एक सिरे से सिर को ढक लेना चाहिये।
साधना कक्ष एकांत में हो।केवल साधक ही आ जा सके।यह सिद्धि रात्रि 11 बजे से शुरू करे।
दिशा पूर्व होनी चाहिये।
अपने कमरे के फर्श पर सुगंधित चन्दन,गुलाब, मोगरा ,चमेली का सेंट या परफ्यूम या इत्र छिड़क दें,यही कमरे के चारो दीवारों पर 5 फ़ीट के ऊँचाई तक छिड़के।
अब पूजा की चौकी पर जल से भरा कलश अपने बाएं तरफ रखे,पूजा की थाली जो लगभग 600 ग्राम की हो काँसे की ,कलश के दायी तरफ रखे।थाली का केन्द्र चौकी के ठीक बीच मे हो।साधक और बाजोट की बीच 1 मीटर का फ़ासला होना चाहिये।
थाली में सबसे पहले सभी जगह पीले फूलों की पंखुड़ियां बिछाये, ये फूल गेंदे के या कनेर के ले सकते है।इसके बाद माता का फोटो थाली में रखे।फ़ोटो पर माला पीले फूलों की टांग दे।आप थाली में बायीं तरफ़ फ़ोटो के 2 पीले फल,2 पीली मिठाई रखे।थाली में केंद्र पर देशी घी का दिया जलाये, दिय की लौ फ़ोटो की तरफ रखे।थाली में धूपबत्ती भी रख सकते है।बन्द आँखो से मन्त्र जाप कर सकते है।
सबसे पहले पवित्रीकरण करे।उसके बाद वास्तुदोष पूजन करें उसके बाद दिशा बंधन करें।उसके बाद संकल्प ले।मन्त्र सिद्धि शुरू करें।जप के बाद माता की आरती करे।पूजा स्थल पर सो जाएं।सुबह उठकर स्नान आदि करके माता का पूजन और आरती करें।रात्रि की सामग्री फल,फूल,मिठाई लक्ष्मी जी के मंदिर में चढ़ा दें।यह क्रिया कर्म 3 माह करे, लक्ष्मीजी सिद्ध हो जाएंगी।ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य रूप से करें।
सिद्धि में सबसे पहले भक्तामर स्त्रोत का 16 नंबर श्लोक जपे,उसके बाद 10 माला माता लक्ष्मी जी का जाप करे,तभी साधक को सिद्धि प्राप्त होगी।साधक का मन साफ,पवित्र हो।
इस साधना को गुरुवार से विशेष नक्षत्र में शुभ वार देखकर सिद्ध किया जाता है।
भक्तामर स्त्रोत-16
निर्धूम वर्तीरपवर्जित तेल पूरह्
कृत्स्न्म् जगत्त्रयमिदम् प्रकटीकरोषि।
गम्यो न जातु मरूताम् चलिताचलानाम्
दीपोअपरस्त्वमसि नाथ जगतप्रकाशह् ।।
मन्त्र-ॐ श्रीम् ह्रीम् क्लीम् महालक्ष्मये नमः
गुरुदेव अशोक कुमार चन्द्रा
हरिद्वार उत्तराखण्ड
00917669101100
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Email- vishnuavtar8@gmail.com
Tuesday, April 10, 2018
यक्ष साधना
यक्ष सिद्धि-यह सिद्धि 21 दिन की होती है।इसमे साधक भीम यक्ष सिद्ध करता है,जो साधक को बल प्रदान करते है और साथ में अन्य शक्ति भी ।
यह बल साधक अपने बल की तुलना में हजार गुना बढ़ा सकता है।इसके अतिरिक्त अन्य यक्ष भी है जिनके नाम यहाँ दिए जा रहे है किंतु सिद्धि विधान नही दिया जाएगा।केवल भीम यक्ष सिद्धि विधान दिया जाएगा।यह सिद्धि किसी भी शुक्ल पक्ष के पुष्य,मघा,अनुराधा नक्षत्र मे मंगलवार के दिन से शुरू की जाती है।
सिद्धि मे दिशा उत्तर ,साधक के वस्त्र लाल,आसन लाल,रुद्राक्ष माला ,माथे पर सिंदूर का तिलक लगाय।अगर साधक श्मशान में सिद्धि कर रहा है तो माथे पर काला तिलक श्मशान के कोयले से लगा सकता है!
सिंदूर के अभाव में हल्दी तिलक भी लगा सकते है।
22वे दिन हवन अनिवार्य है।
साधना से पूर्व और साधना के बाद यक्ष नमस्कार अनिवार्य है।
माला को गोमुखी में रखे।
काँसे की थाली 600 ग्राम की होनी चाहिये।
बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाये।
सामग्री में कच्चा नारियल पानी वाला,सफेद ,हरी, लाल मिठाई,फल रखें।लाल गुलाब की माला चढ़ाय।
मन्त्र- ॐ ह्रौं भीम वक्राय स्वाहा।
चमेली के तेल का चौमुखा दिया जलाये।केवड़े का जल ,अगरबत्ती,इत्र का प्रयोग करे।शरीर पवित्रीकरण, सामग्री पवित्रीकरण करे।वास्तुदोष पूजन,गुरुपूजन करे।
शेष यक्ष निम्न है-महावक्र,सिंह वक्र,ध्यानेत्राय,गर्दभास्य,महावीर,बहुवक्र, गजानन,विभ्रम्,बाहुक,वीर,सुग्रीव,रंजक,पिशाचस्य,ज्रम्भक, वामक,अर्थद,जयद, मणिभद्र,मनोहर।।।
उपरोक्त यक्षों की सिद्धियां भी भीम यक्ष के समान होती है किन्तु यक्षणमस्कार मे अंतर होता है।
गुरुदेव अशोक कुमार चन्द्रा
हरिद्वार उत्तराखण्ड
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Monday, March 12, 2018
शव साधन(वीर साधन)- यह साधन 1 दिन से लेकर 40 दिन तक होता है।यह साधक के ऊपर निर्भर करता है कि साधक कितने दिनों की साधना सिद्ध करना चाहता है।
यह सिद्धि कृष्ण पक्ष की अष्टमी या शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी से शुरू की जाती है।
सबसे पहले साधक को श्मशान में जाकर अपने पूजा की सामग्री जमा लेनी चाहिए उसके बाद शव की स्थापना करनी चाहिए।
शव की स्थापना (यदि साधक अनेक सिद्धियों से पूर्ण है तो आटे का शव बनाकर उसमें किसी भी आत्मा को मन्त्र शक्ति के बल से प्राण प्रतिष्ठा करके पुतले में प्राण फूंके)
यदि ऐसा न हो तो अप्राकृतिक तरीके से मृत शव को भी प्रयोग कर सकते है।साधन में केवल मेल शव ही मान्य होता है,फीमेल शव नही।
शव को किसी भी तरह से बीमारीमुक्त होना चाहिये।
साधक को सबसे पहले श्मशान में संकल्प लेना चाहिये
ॐ अध्येत्यादी अमुक गोत्र श्री अमुक देवशर्मा अमुक मन्त्र सिद्धि काम ह श्मशान साधन महम करिष्ये।
उसके बाद साधक को गुरु पूजन,गणेश,योगिनी,बटुक,मार्तगन पूजन करना चाहिये।
इसके बाद पूर्व में श्मसानाधिपति,दक्षिण में भैरव,पश्चिम में कालभैरव,उत्तर में महाकाल भैरव की पूजा बलि देनी चाहिये।
सभी बलि सामिष अन्न की होनी चाहिये
जैसे -अन्न,गुड़ ,सुरा,खीर,अनेक प्रकार के फल,नैवेद्य ,विविध देवताओं की पूजा में विविध द्रव्य।
शमशान में 4 पात्र चारो दिशाओं में रखकर 3 मध्य में रखे और कालिका देवी,भूतनाथ,सर्वगणनाथ की पूजा बलि दे।
इसके बाद लोहे की कीले हाथ मे लेकर वीरार्दन मन्त्र बोलकर सभी दिशाओं में फेंक दे।
हुम हुम ह्रीम ह्रीम कालिके घोरदंष्ट्रे प्रचन्डै चंड़े नाइके दाँवण्ड्रॉए हन हन शवशरीरे महाविघ्नं छेदय छेदय स्वाहा हुम फट//
जप की 11 माला पर सिद्धि प्राप्त होती है।
ॐ फट मन्त्र से शव का पूजन करे।ॐ मृतकाय नमः फट से शव को स्नान कराकर फूल ,सुगंध आदि लगाय,फिर शव को कमर से उठाकर पूजा स्थान पर कुशा के बिस्तर पर लिटाए।
शव के मुख में इलायची,लोंग, कपूर,कत्था(खेर) ,अदरक,ताम्बूल,जायफल डालकर शव को अधोमुख करे।
शव की पीठ पर बाहुमूल से कटी तक यंत्र बनाय।एक मंडल बनाकर आठ पत्तियां बनाए।सभी मे ॐ ह्रीम फट लिखे।मंडल में अघोर सुदर्शन मन्त्र लिखे।
अब साधक पीठ पर कंबल डालकर एकाग्र मन से बैठ जाये।
शव के चारो और 10 दिशाओं में 12 अंगुल पीपल के लकड़ियां भूमि में गाड़े।मन्त्र जाप शुरू करे यदि शव बोल जाय तो डरे नही ।आसन बंधन करे।
मन्त्र जाप के समय यदि आकाश से आवाज आये तो वचन ले, बलि के समय आटे का बकरा या मुर्गा दे।ऐसा करने से साधन को मनचाहा वरदान प्राप्त होता है।यह साधन अनिवार्य रूप से गुरु की देखरेख में ही करे।वीर साधन प्राचीन काल की तंत्र शाखा की ही एक सिद्धि है जो वर्तमान में भी जीवित है।
यहाँ साधना का पूर्ण वर्णन नही किया गया है केवल 2 प्रतिशत ही बताया गया है।यह साधना केवल जानकारी हेतु है।
गुरु अशोक कुमार चन्द्रा
हरिद्वार उत्तराखण्ड
हेल्पलाइन 00917669101100
Friday, February 23, 2018
51 सिद्धियां
वर्ष 2018 की 21 साधना सिद्ध करने के बाद शेष 30 सिद्ध साधनाए को साधक आगे करना चाहते है निम्नवत है---
22-हमजाद सिद्धि
23-श्मशान काली सिद्धि
24-दक्षिणा काली सिद्धि
25-बगलामुखी सिद्धि
26-धूमावती सिद्धि
27-बेताल सिद्धि
28-2 भूत सिद्धि
29-6 भूत सिद्धि
30-वट वृक्ष भूत सिद्धि
31-वार्ताली देवी सिद्धि
32-पंचांगुली देवी वरदान सिद्धि
33-रंजिनी अप्सरा सिद्धि
34-लाल परी सिद्धि
35-ग्रहण कालीन डाकिनी सिद्धि
36-शांकिनी सिद्धि
37-ब्रह्मराक्षस सिद्धि
38-पिशाच सिद्धि
39-वज्रयोगिनी सिद्धि
40-श्रुतदेवी सिद्धि
41-घण्टाकर्णी देवी सिद्धि
42-कपालिनी सिद्धि
43-मासिक धर्म दोष निवारण स्त्री (अष्टविनायक सिद्धि)दीर्घ साधना
44-गौ जोगिनी सिद्धि
45-सुग्रीव साधना
46-लौंग मोहिनी सिद्धि(इशमाईल जोगी वरदान )
47-वायुगमन सिद्धि
48-(रावण सिद्ध) स्त्री वशीकरण काजल सिद्धि
49-सूर्य देव सिद्धि(श्रीकृष्णा सिद्ध)
50-शव साधना(वीर-साधन)
51- मृत आत्मा आवाहन सिद्धि
उपरोक्त सिद्धियाँ वर्तमान में सिद्ध और कार्य करती है।
योग्य साधक ही साधना के पात्र होंगे।
सभी सिद्धियां ऑनलाइन सिद्ध करायी जाएंगी।
गुरुदेव अशोक कुमार चन्द्रा हरिद्वार उत्तराखंड भारत
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Friday, February 9, 2018
आक वीर सिद्धि
आक वीर सिद्धि--यह साधना कृतिका नक्षत्र के प्रारम्भ से शुरू करके उसी दिन सिद्ध की जाती है।साधक को यह सिद्धि मात्र 21 माला जप करने से प्राप्त हो जाती है।यह एक दिन की साधना होती है।साधक को अपने माथे पर सफेद तिलक लगाना चाहिये।
सफेद वस्त्र ,आसन ग्रहण करने चाहिये।आक के पेड़ के नीचे साधक शांत मन से बैठे।देशी घी का दिया जलाये,उद की धूप करे।मीठा रोट का भोग लगाय।मन्त्र जाप करे।
प्रत्येक माला पर बेरी के कांटे से खरोंच लगाय आक के पेड़ पर ।
सम्पूर्ण कार्य होने पर शांत मन से बैठे रहे।मन्त्र जाप के समय या बाद में वीर साधक को आवाज देता है,डरे नही ,निर्भय होकर वीर से वचन ले।पवित्रीकरण,वास्तुदोष पूजन, संकल्प,सुरक्षा रेखा,गुरुमन्त्र अनिवार्य है।जब वीर सिद्ध होता है तो सभी कार्य सम्पन्न करता है।
यह वीर बन्द आँखो में ही दर्शन देते है।सिद्धि के समय भयानक दृश्य दिख जाने पर साधक को डरना नही चाहिये।
मन्त्र -ॐ नमो आदेश गुरु का
वीर कम्बली, वीर घात करे,चेते हनुमान वीर नही तो शिव की दुहाई।।
गुरु अशोक कुमार चन्द्रा
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चमत्कारी 21 सिद्धियां सीखे
सन 2018 सिद्ध साधनाएँ-
यह साधनाएँ पूर्ण रूप से वर्तमान में सिद्ध और कार्य करती है किंतु साधक इन सिद्धियों से अपना स्वार्थ सिद्ध नही कर सकता,साधक पर हित कर सकता है।अपना हित चाहने वालो को कभी भी सिद्धि प्राप्त नही होती है।जो लोग यह समझते है कि सिद्धि करने से अपना भला होता है तो यह उनकी गलत विचारधारा है।
वास्तव में सिद्धियाँ तांत्रिककर्म से पीड़ित मनुष्यो की देह को रोगमुक्त करने का कार्य करती है।वर्तमान में जो साधक साधनाए सिद्ध करना चाहते है ,कर सकते है ।
जो भी सिद्धियां करेंगे उसकोे हम इस सारणी क्रम वार में सिद्धि करायेंगे न कि उसकी इच्छा से।
इन सिद्धियों की संख्या कुल 21 होगी।इनको सिद्ध करने में 2 वर्ष का समय लगेगा।इसके लिये साधक के पास अपना कमरा होना चाहिए। जिनके पास कमरा नही है वो पहले कमरे की तैयारी करें।उसके बाद साधनाए सिद्ध करे।
साधनाओ का विवरण निम्न है--
1 माता विन्ध्यवासिनी सिद्धि
2 भैरव सिद्धि
3 हनुमान सिद्धि
4 माता रक्ता देवी साधना
5 हनुमान सिद्धि भाग 1
6 हनुमान सिद्धि भाग 2
7 चक्रेगमालिनी सिद्धि
8 शिवजी वरदान सिद्धि
9 आक वीर सिद्धि
10 कामाख्या देवी वचन सिद्धि
11 बावन वीर सिद्धि
12 चौसठ योगिनी सिद्धि
13 मसान सिद्धि
14 श्रीराम सिद्धि
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15 कर्णपिशाचिनी सिद्धि
16 महाकाली सिद्धि
17 तारादेवी सिद्धि
18 उग्रतारा देवी सिद्धि
19 रम्भा अप्सरा सिद्धि
20 यक्ष कुमारी सिद्धि
21 शिवकृत्या सिद्धि
उपरोक्त सिद्धियां सिद्ध करनी अनिवार्य होती है साधक के लिये। समय अभाव होने के कारण
सभी साधनाए ऑनलाइन सिखायीं जाती है।इनको सिद्ध करने के बाद साधक आगे उच्च कोटि की सिद्धियों को सिद्ध कर सकते है।
गुरु अशोक कुमार चन्द्रा
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Saturday, February 3, 2018
डाकिनी देवी ग्रहणकालीन सिद्धि
ग्रहण कालीन डाकिनी वरदान सिद्धि--
यह साधना ग्रहण के समय मे ही सिद्ध की जाती है।
ग्रहण के समय मे डाकिनी देवी साधक को बंद आँखो में दर्शन देकर वचन करके वरदान या आशीर्वाद प्रदान करती है।
यह साधना एकांत कमरे में सिध्द की जाती है।
यह साधना मात्र 1 घण्टे की होती है,जब भी ग्रहण हो 1 घण्टे से ज्यादा तो साधना पूर्ण सिद्ध होती है।यह साधना पूर्ण प्रमाणिक और सिद्ध है
ग्रहण से एक घण्टे पहले साधक स्नान करके बंद कमरे मोगरा ,चमेली का सेंट दीवारों ,फर्श,छत पर छिड़क दें।सफेद कपड़े को धारण करे।सफेद आसन बिछाये।
सामने बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछाये।देशी घी का अखण्ड दिया त्रिभुजाकार अर्थात त्रिकोण में जलाये।
सरसो की ढेरी बनाए।फल फूल मिठाई रखे।सुगन्धित अगरबत्ती जलाये।इतर रखे।माथे पर काला रंग का तिलक लगाएं।
डाकिनी मन्त्र को 1 माला जपे।
डाकिनी दिए कि लौ से प्रकट होकर सामग्री साधक से मांगेगी।साधक डरे नही और शांत मन से सभी सामग्री डाकिनी को अर्पण करें।
अंत मे डाकिनी साधक से खाने के लिये भोग मांगेगी तब साधक को ''डाकिनी भोग'' जो गुरु निर्देश में तैयार किया जाता है ,डाकिनी को दिया जाता है तब डाकिनी प्रसन्न होकर साधक को वरदान देती है।साधक के सभी कार्य करती है।दिशा उत्तर रहेगी मन्त्र जाप में।
मन्त्र जाप शुरू करते ही अनेक भयानक भूत प्रेत की आकृतियाँ साधक को बन्द आँखो से दिखाई देती है और अंत मे डाकिनी सिद्ध होती है।
मन्त्र-नमो चन्डी सुखार धरती चढ़ाया कुण कुण वीर हनुमन्त वीर चडीया
गोंडा चढि जांघ चढि कटी चढ़ी पेट चढ़ी पासलि चढि हिया चढि छाती चढि मुख चढि जिह्वया चढि कान चढि आंख चढि ललाट चढि शीश चढि कपाल चढि चोटी चढि।
नरसिंह हनुमन्त चले।वीर संदवीर आज्ञावीर चले सो संता वीर चढ़े।
गुरु अशोक कुमार चन्द्रा
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Monday, December 11, 2017
धन लाभ साधना
नींद में चलना बीमारी से मुक्ति साधना
@@नींद में चलना,सपने में डरना या आवाज न निकलना@@
कुछ लोगो में यह बीमारी हो जाती है की वो नींद में चलते है और उनको कुछ याद ही नही रहता है,यह सब कार्य कोई काली आत्मा करती है उसको नींद में चलाने का,कभी कभी तो ये आत्माये ऐसे लोगो को अपना शिकार बना देती है ।
दूसरी तरफ यदि आपको सपने में डर लगता है या किसी ने आपकी आवाज बन्द कर दी अर्थात गला दबा दिया तो इस उपाय को करने से सभी समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है।
शनिवार की शाम को नहा कर अपने सिर के ऊपर से कड़वे तेल का दिया रुई की बत्ती डालकर 5 बार घुमाकर उतारे।इस दिये को किसी मन्दिर में जहाँ सीढ़िया हो ,उन सीढ़ियों पर रख कर जला दे और प्रार्थना करे की मेरी सभी समस्या दूर हो।
मन ही मन गुरु गोरखनाथ जी का स्मरण करे।यह क्रिया 5 शनिवार करनी है।
आप ठीक हो जाओगे।
नींद में चलने की बीमारी भी खत्म हो जायेगी और डरावने सपने ,गला दबना आदि भी बीमारी भी जड़ से खत्म हो जायेगी।
गुरु अशोक कुमार चन्द्रा
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Sunday, December 10, 2017
शोकापीर मन्त्र साधना
Saturday, December 2, 2017
लाल परी साधना
Saturday, November 11, 2017
प्राचीन रम्भा अप्सरा सिद्धि
----रम्भा अप्सरा साधना----
यह साधना 21 दिन की है।
22वे दिन साधक या साधिका को हवन करना होता है।
साधक को साधना कक्ष में गुलाबी रंग का कलर करना चाहिये।
साधक को यह साधना रात्रि 11 बजे से आरम्भ करनी चाहिये।
साधक को माथे पर चन्दन का सुगन्धित तिलक लाल ,गुलाबी वस्त्र,गुलाबी आसन, बाजोट पर गुलाबी कपड़ा प्रयोग करना चाहिये।
यह साधना पूर्ण परीक्षित और वर्तमान में सिद्ध प्रयोग है।
इस साधना में साधक को प्रारम्भ में स्नान करके पश्चिम दिशा की ओर मुख करके 21 माला मन्त्र जाप करना होता है।
जाप की माला लाल मूंगे की होनी चाहिये नही तो रुद्राक्ष की माला से भी इस अप्सरा को सिद्ध किया जा सकता है।
यह साधना किसी भी होली दीपावली,नवरात्रों,ग्रहण काल,शिवरात्रि अथवा शुक्रवार से प्रारम्भ की जा सकती है।
गुलाबी वस्त्र पहनकर माथे पर लाल चंदन का तिलक लगाकर ,गुलाबी आसन पर बैठकर अपने सामने बाजोट अर्थात लकड़ी की चौकी पर गुलाबी वस्त्र डालकर उसके ऊपर एक काँसे की थाली में लाल गुलाब की पंखुड़ियां डाले।
अप्सरा रम्भा की फ़ोटो फ्रेम सहित रखे।फल फूल मिठाई चढ़ाए।अप्सरा को तिलक लगाएं।
प्रथम दिन से लेकर 21वे दिन तक एक माला अप्सरा के फोटो पर चढाए या टांग दे।
इस साधना में भयानक अनुभव नही होते है किंतु कभी कभी कुछ आत्माए साधक को परेशान करती है।21 वे दिन साधक एक माला साथ मे रखे।
जब अप्सरा से वचन हो जाये तो उसे माला पहना दे।एक बात साधको को बता दूं कि यह माला मानसिक रूप से पहनाई जाती है।
साधक को भोजन केवल खीर का एक टाइम दोपहर को करना चाहिये।इसके अलावा कुछ नही खाना होता है।
मन्त्र जाप के समय साधक को अपनी बन्द आँखो में रम्भा अप्सरा की फोटो का प्रतिबिम्ब रखे।मन शांत रखे।
मन्त्र जाप के समय कमरे की सुगन्ध तेजी से बढ़ेगी,पायलों की आवाज, घुँघरू की आवाजें सुनाई पड़ती है।
कभी कभी तीव्रता से सफेद प्रकाश आता है पूरा कमरा प्रकाश वान हो जाता है।
साधना के बीच मे अप्सरा दर्शन भी देती है,मन्द मन्द मुस्कान के साथ, प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करती हुई,अधोवस्त्र धारण किये हुए।
अंतिम दिन जब साधक अप्सरा मन्त्र जाप करता है तो अप्सरा साधक से बात करती है तब साधक अप्सरा से वचन लेकर उसे अपनी प्रेमिका के रूप में बाँध देता है।
अप्सरा से सम्भोग का वचन न ले नही तो हानिकारक सिद्ध हो सकता है साधक के लिये।
पत्नी रूप में भी इसको सिद्ध कर सकते है।
रम्भा
अप्सरा सिद्ध साधक के शरीर से हमेशा सुगन्ध आती रहती है मानो उसने कोई इत्र लगा रखा हो।
साधक या साधिका के शरीर मे बहुत तेज आता है,नवयौवन आता रहता है,बुढ़ापा पास नही आता है।
ऐसे साधक के पास आकर्षण शक्ति आ जाती है।जिसको एक बार निगाह मिलाकर देख ले वह प्राणी वशीभूत हो जाता है।
इस साधना की विशेषता यह है इस सिद्ध मन्त्र से मिठाई पढ़ कर किसी को दी जाय तो वह वश में हो जाता है।
जब भी साधक बन्द आँखो से अप्सरा को बुलाता है तो अप्सरा साधक को अपने साथ प्रेमक्रीड़ा मे ले जाती है और वह दुनिया इस देह की दुनिया से 10000 गुना ज्यादा सुंदर होती है।
साधना में पवित्रीकरण,वास्तुदोष पूजन,सुरक्षा मन्त्र ,संकल्प,गुरुमन्त्र,शिव मन्त्र,गणेश मन्त्र का ध्यान कर अप्सरा साधना शुरू करे।
,,मन्त्र-
ॐ क्ष म र म रम्भा अप्सराये नमः।
यह साधना दीक्षित साधक ही सिद्ध करे, तभी फलीभूत होगी।यह साधना बहुत तीव्र और सरल है।पल भर में साधन मात्र से सिद्धि देने वाली है।
गुरु अशोक कुमार चन्द्रा
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यह साधना 21 दिन की है।
22वे दिन साधक या साधिका को हवन करना होता है।
साधक को साधना कक्ष में गुलाबी रंग का कलर करना चाहिये।
साधक को यह साधना रात्रि 11 बजे से आरम्भ करनी चाहिये।
साधक को माथे पर चन्दन का सुगन्धित तिलक लाल ,गुलाबी वस्त्र,गुलाबी आसन, बाजोट पर गुलाबी कपड़ा प्रयोग करना चाहिये।
यह साधना पूर्ण परीक्षित और वर्तमान में सिद्ध प्रयोग है।
इस साधना में साधक को प्रारम्भ में स्नान करके पश्चिम दिशा की ओर मुख करके 21 माला मन्त्र जाप करना होता है।
जाप की माला लाल मूंगे की होनी चाहिये नही तो रुद्राक्ष की माला से भी इस अप्सरा को सिद्ध किया जा सकता है।
यह साधना किसी भी होली दीपावली,नवरात्रों,ग्रहण काल,शिवरात्रि अथवा शुक्रवार से प्रारम्भ की जा सकती है।
गुलाबी वस्त्र पहनकर माथे पर लाल चंदन का तिलक लगाकर ,गुलाबी आसन पर बैठकर अपने सामने बाजोट अर्थात लकड़ी की चौकी पर गुलाबी वस्त्र डालकर उसके ऊपर एक काँसे की थाली में लाल गुलाब की पंखुड़ियां डाले।
अप्सरा रम्भा की फ़ोटो फ्रेम सहित रखे।फल फूल मिठाई चढ़ाए।अप्सरा को तिलक लगाएं।
प्रथम दिन से लेकर 21वे दिन तक एक माला अप्सरा के फोटो पर चढाए या टांग दे।
इस साधना में भयानक अनुभव नही होते है किंतु कभी कभी कुछ आत्माए साधक को परेशान करती है।21 वे दिन साधक एक माला साथ मे रखे।
जब अप्सरा से वचन हो जाये तो उसे माला पहना दे।एक बात साधको को बता दूं कि यह माला मानसिक रूप से पहनाई जाती है।
साधक को भोजन केवल खीर का एक टाइम दोपहर को करना चाहिये।इसके अलावा कुछ नही खाना होता है।
मन्त्र जाप के समय साधक को अपनी बन्द आँखो में रम्भा अप्सरा की फोटो का प्रतिबिम्ब रखे।मन शांत रखे।
मन्त्र जाप के समय कमरे की सुगन्ध तेजी से बढ़ेगी,पायलों की आवाज, घुँघरू की आवाजें सुनाई पड़ती है।
कभी कभी तीव्रता से सफेद प्रकाश आता है पूरा कमरा प्रकाश वान हो जाता है।
साधना के बीच मे अप्सरा दर्शन भी देती है,मन्द मन्द मुस्कान के साथ, प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करती हुई,अधोवस्त्र धारण किये हुए।
अंतिम दिन जब साधक अप्सरा मन्त्र जाप करता है तो अप्सरा साधक से बात करती है तब साधक अप्सरा से वचन लेकर उसे अपनी प्रेमिका के रूप में बाँध देता है।
अप्सरा से सम्भोग का वचन न ले नही तो हानिकारक सिद्ध हो सकता है साधक के लिये।
पत्नी रूप में भी इसको सिद्ध कर सकते है।
रम्भा
अप्सरा सिद्ध साधक के शरीर से हमेशा सुगन्ध आती रहती है मानो उसने कोई इत्र लगा रखा हो।
साधक या साधिका के शरीर मे बहुत तेज आता है,नवयौवन आता रहता है,बुढ़ापा पास नही आता है।
ऐसे साधक के पास आकर्षण शक्ति आ जाती है।जिसको एक बार निगाह मिलाकर देख ले वह प्राणी वशीभूत हो जाता है।
इस साधना की विशेषता यह है इस सिद्ध मन्त्र से मिठाई पढ़ कर किसी को दी जाय तो वह वश में हो जाता है।
जब भी साधक बन्द आँखो से अप्सरा को बुलाता है तो अप्सरा साधक को अपने साथ प्रेमक्रीड़ा मे ले जाती है और वह दुनिया इस देह की दुनिया से 10000 गुना ज्यादा सुंदर होती है।
साधना में पवित्रीकरण,वास्तुदोष पूजन,सुरक्षा मन्त्र ,संकल्प,गुरुमन्त्र,शिव मन्त्र,गणेश मन्त्र का ध्यान कर अप्सरा साधना शुरू करे।
,,मन्त्र-
ॐ क्ष म र म रम्भा अप्सराये नमः।
यह साधना दीक्षित साधक ही सिद्ध करे, तभी फलीभूत होगी।यह साधना बहुत तीव्र और सरल है।पल भर में साधन मात्र से सिद्धि देने वाली है।
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शैतान वशीकरण साधना-यह साधना बहुत ही प्राचीन विद्या है, इस साधना के अंतर्गत साधक या साधिका को एक शक्तिशाली शैतानी जिन्नात सिद्ध होता है। इसक...